आँख खोलकर रखे
आँख खोलकर रखे
आज से 50 साल पुरानी बात है। मैं तब 15 साल की था। उस दिन एस० एस० एल० सी परीक्षा का पहला दिन था। पहली परीक्षा का विषय सामान्य गणित था।
स्कूल में सब जानते हैं कि सामान्य गणित में सर्वश्रेष्ठ सौ अंक पानेवाली विद्यार्थी मैं ही हूं। सुबह जल्दी उठकर नहाकर नई साड़ी पहनकर तैयार होती थी। उन दिनों में परीक्षा के दिनों में यूनिफार्म पहनने की जरूरत नहीं थी। मुझे क्यों न मालूम कि अपने दिल और दिमाग दोनों पूरा साफ सुथरा लगाता उस दिन। मुझे न तो चिंता, न तो बेचैनी थी। नाश्ता लेकर सीधे स्कूल पहुँची।
पहली मंजिल में विशाल परीक्षा हाल में प्रवेश कर अपना नंबर ढूंढकर मैं बैठ गई । उस विशाल हाल में लगभग 200 छात्र-छात्राएँ बैठकर परीक्षा लिख सकते हैं। वहां कई परीक्षक इधर-उधर घूम कर निरीक्षण करने लगे थे। उस दिन हमारे स्कूल में परीक्षा लिखनेवाली लड़कियां बीस थीं। इस की वजह एक पंक्ति में चार-चार होकर पांच पंक्तियों में हमें बैठकर परीक्षा देना पड़ा था।
सीधे 10:00 बजे परीक्षा आरंभ हुई। उत्तर-पत्र तथा प्रश्न-पत्र दोनों का वितरण हो चुका था। सबका ध्यान परीक्षा लिखने में लग गया। मैंने पूरे डेढ़ घंटे में परीक्षा दे दी थी। बाकी समय मैं खामोशी बैठी थी। उस समय हमारे पास घूमते रहते परीक्षक मेरे सामने खड़े होकर सब को चेतावनी दे रहे थे कि उत्तर पूरा लिखने के बाद दुबारा पढ़कर जांज कीजिए कि कोई गलत है या सब ठीक से लिखा गया या नहीं।
इस प्रकार चेतावनी देते समय उन्होंने अपनी उंगली मेरे उत्तर पत्र के पहले पृष्ठ पर रखकर थपथपाते थी। फिर चले जाते थे। समय बीत गया। अंतिम 5 मिनट ही थे। फिर भी उन परीक्षक ने मेरे उत्तर पत्र में अपनी उंगली से थपथपाकर चेतावनी दे रहे थे। उत्तर पत्रों का एकत्र करने का समय हो गया। मैं अपना उत्तर पत्र सौंप कर बाहर आई।
बाहर आने के बाद ही मेरे दिमाग में अपनी गलती प्रकाशित हुई। कितनी बेसमझी कि मैंने ! पहले पृष्ठ में मैंने भूल से 2×2×2=8 लिखने बिना 6 लिखकर उस समस्या हल कर दी। पूरे उत्तर पत्र में वही एक गलती मैंने की। इस कारण पूरे डेढ घंटे परीक्षक को मुझे चेतावनी देकर बेचैनी से घूमते रहना पड़ा था।
आज 50 साल की बाद उस दिन की याद में पछताव करती हूं मैं कि 100 अंक के बदले मुझे 98 मिलने की बात पर नहीं पर उन परीक्षक को मैंने कितना बेचैन करवाया पूरे डेढ़ घंटे तक। गुरुजनों का मन समझती हूं खुद एक अध्यापिका बनने के बाद इसलिए मैं आप सभी छात्र-छात्राओं को बार-बार समझाती हूं कि हमेशा घमंड से न बैठें,आंखें खोलकर रखें।
