भारतीय भाषाओं में निर्मित फिल्मों में मछुआरा जीवन
भारतीय भाषाओं में निर्मित फिल्मों में मछुआरा जीवन
मछलियां पकड़ने वाले समुदाय को मछुआरा कहते हैं। भारत एक प्रायद्वीप है कि इसके तीनों ओर सागर और महासागर से घेरा है जैसे पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिंद महासागर और पश्चिम में अरब सागर से तीनों ओर पानी ही पानी है। भारतीय समुद्र तट की कुल लंबाई 7516.6 किलोमीटर दूर है। इस लंबी समुद्र तट में लगभग 4000 मछुआरों के गांव होते हैं जहां करीब 8.64 लाख मछुआरा परिवार लोग रहते हैं। इस बिस्तर मछुआरा समाज का विशेष महत्व होता है कि इस समाज का सभ्य ,संस्कृति ,रीति रिवाज,भाषा,जीवनशैली,आदि थल में रहनेवाले लोगों के जैसे उत्तम होते हैं। मछुआरा जीवन को आधारित भारतीय भाषाओं में कई फिल्में निर्मित हो गईं हैं।
1964 में निर्देशक टी . प्रकाश राव ने 'पडकोट्टी' नामक एक तमिल फिल्म की निर्माण की। उन्होंने इस फिल्म में मछुआरों की समस्याओं के बारे में विस्तार से दिखाया ।
1965 में केरल के निर्देशक रामुकरियट से निर्मित मलयालम फिल्म 'चेम्मीन 'आज भी विश्व भर लोगप्रिय फिल्म है जो तकलि शिवशंकर पिल्लै से लिखी उपन्यास 'चेम्मीन ' की कहानी है।
1973 में बालिवुड के विक्ष्व प्रसिद्ध अभिनेता और निर्देशक राजकपूर से निर्मित हिंदी फिल्म ' बाॅबी ' मछुआरा परिवार की खुश और संतुष्ट जीवनशैली को खूब प्रकट किया है और लोकप्रिय फिल्म बन गई। इस प्रकार भारतीय भाषाओं में कई फिल्में निर्मित किया है जो मछुआरा जीवन को आधारित होती हैं।
