आगरा व दिल्ली
आगरा व दिल्ली
चेन्नई से एक दादी आरक्षित वर्ग के डिब्बे में एक पेटी के साथ आगरा जाने के लिए तमिलनाडु एक्सप्रेस ट्रेन में सवार हुईं। उसने डिब्बे में बैठे एक युवक को बताया,"अरे पोता, मैं कल सुबह 7 बजे आगरा में शादी में शामिल होने के लिए निकल रही हूं। यह ट्रेन सुबह छः बजे आगरा पहुंचेगी।
मैं सो जाऊंगी और मुझे 6.00 बजे जगा दू और मुझे आगरा स्टेशन में छोड़ दू।
अगर मैं नहीं उठी, तो मुझे उड़ा दो और प्लांटफार्म पर बिस्तर पर डालकर जाना।
मैं फिर बाद में ऑटो पकड़कर वेडिंग हॉल में जा सकूं। असुविधा के लिए खेद है। युवक ने कहा," बस, इतनी ही बात है न!" दादी फिर से कहीं,"मेरी यह मदद करो, पोता लाल!"
उसने कहा, "दादी, क्या मदद है? मैं निश्चित रूप से आपको आगरा में छोड़ूंगा। इसके लिए आप इतना मदद जैसा बड़े शब्द मत कहो।" दादी ने भी उन पर भरोसा किया और अच्छी तरह सोईं।
सुबह सात बजे जब दिल्ली स्टेशन पर पहुंचे तो दादी ने युवक को डांटते हुए कहा कि समय हो गया है। आप अच्छे हैं या बुरे ? अगर तुमने मुझे पहले ही बता दिया होता कि मैं सो नहीं जाऊंगी। मैं सोया नहीं होता या मैं किसी और को बता देती। अब पहले ही सात बज चुके हैं। आसपास के लोगों ने बात सुनी और अपनी ओर से उसे डांटा भी। लेकिन वह युवक इस योजना और प्रहार की परवाह किए बिना गंभीरता से सोच रहा था।
दादी ने पूछा, "अरे पगली! मैं तुम्हें इस तरह पीट रही हूं और तुम क्या सोच रहे हो? तुम कुछ भी परवाह किए बिना क्या सोच रहे हो? पगली !"
युवक ने कहा, "मैं सोच रहा हूं कि अगर यह दादी है जो मुझे इस तरह डांटती है, तो मुझे किस तरह डांटेगी दूसरी दादी जिसे मैंने पूछे बिना जबरदस्ती से आगरा प्लेटफॉर्म पर 6.00 बजे छोड़ दिया ?"
