हिन्दी में अनूदित साहित्य
हिन्दी में अनूदित साहित्य
अनुवाद एक महत्वपूर्ण कला है, शिल्प है और विज्ञान भी है। वह एक संबंध का नाम है जो दो या दो से अधिक भाषाओं के बीच होता है। अनुवाद वह प्रक्रिया है जिससे एक भाषा-समुदाय से दूसरे भाषा-समुदाय को संप्रेषित किया जाता है। भारत जैसे बहुभाषी देश में स्वतंत्रता पाने के बाद विभिन्न भाषा भाषी भारत वासियों में संपर्क की स्थिति प्रमुख रूप से आरंभ हुई। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते हुए आदान-प्रदान के कारण अनुवाद कार्य की अनिवार्यता और महत्त्वता की नई चेतना प्रबल रुप से विकसित होती हुई।19वीं तथा 20वीं शदाब्दी में सभी भारतीय भाषाओं की साहित्यिक कृतियों के अनेक अनुवाद हिंदी में हुए हैं।
भारत सरकार की योजना-
भारतीय भाषाओं में “ विविधता में एकता” भावना बढ़ाने के लिए अनुवाद के माध्यम से उन भाषाओं के साहित्य को भाषांतर या रुपांतर या दोनों प्रकार में अनुवाद करवाने के प्रयास में भारत सरकार अपना कदम आगे रखा है। तमिलनाडु में पूजय बाबू जी के द्वारा स्थापित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में स्नातकोत्तर स्तर पर अनुवाद डिप्लोमा चलाकर उसे पढ़ रहे अनुवादक तेलुगु, तमिल, कन्नड तथा मलयालम आदी दक्षिण भारतीय भाषाओं में उपलब्ध प्रमुख साहित्य रचनाएं हिंदी में अनुचित साहित्य बनाते रहते हैं। कर्नाटक के मैसूर में स्तिथ राष्ट्रीय अनुवाद मिशन भारतीय भाषा संस्थान की नवीनतम शैक्षिक सांस्कृतिक परियोजना है। यहां साहित्येतर विषयों का अनुवाद क्रिया चलता रहा है।
तमिल साहित्य हिंदी में-
मेरी मातृभाषा तमिल के साहित्य रचनाएं आजकल अनूदित हिंदी साहित्य के रूप में उपलब्ध हैं।
संगम साहित्य का अनुवाद-
हम जानते हैं कि काव्य साहित्य का अनुवाद करना बहुत कठिन है। फारेस्ट स्मित का कथनानुसार साहित्यिक रचना का अनुवाद उबली हुई चेर्री की तरह होता है (अंग्रेजी में Translation of a literary work is as tasteless as a stewed strawberry.)।लेकिन आजकल अनुवादक यह स्थापित करते हैं कि अनूदित साहित्य अनुवाद न बने सृजन बन जाता है। उदाहरण के लिए ' तिरुक्कुरल हिंदी भाषा में ' पुस्तक के बारे में देखेंगे।
अक्षर सबके आदि में है , अकार का स्थान।
अखिल लोक का आदि , तो रहा आदि भगवान।
भ्रव सागर विस्तार से पाते हैं निस्तार।
ईश-शरण बिन जीव , तो कर नहीं पाए पार।
अनुवादक श्रीमान एम०जी०वेंकटकृष्णन से सन् 1998 में प्रकाशित हुई इस पुस्तक अनुवाद ना होकर हिंदी भाषा का एक सृजन मान्ने का योग्यता में है। कौन जानते ,अगर अगली पीढ़ी इस प्रकार अनुवाद हिंदी भाषा में पढ़ने के बाद यह हिंदी साहित्य कहेंगे ,तो आश्चर्य ना होगा !
आट्रुपडै-
संगम साहित्य की एक विदा है आट्रुपडै। संगम साहित्य में चार प्रकार आट्रुपडै रचनाएं मिला। उनमें एक है तिरुमुरुगाट्रुपडै। इसे सन् २०१४ में श्री०पि०के०बालसुप्रह्मण्यन ने अनूदित प्रकाशित की।
पुरनानूर ,नालडियार आदि का अनुवाद-
सन 2004 में श्री अव्वै नडराजन के द्वारा उद्घाटन किया गया भारत सरकार के सहायक अनुदान से आयोजित संगोष्ठी के लिए कई अनुवादक के सहायता से संगम साहित्य के पुरनानूर ,नालडियार, इन्ना नार्पद ,इनियवै नार्पद ,आदि सभी विधाओं को लेकर रूपांतर करने का प्रयास किया गया है। उनके सारांश से संगम साहित्य की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा और नैतिक तत्व विषयों पर कई प्रपत्र लिखवा कर छापा गया है। मैं विनय से यह कहना चाहती हूं कि मैं भी दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में पीजी डिप्लोमा कर चुकी अनुवादक हूं। रामायण में सेतु बंधन बनाते समय सभी वानर सेना भारी-भारी चट्टानों को लेकर समुद्र में डालने को देखकर एक गिलहरी ने छोटा-सा कंकड़ को लेकर समुद्र के पानी में डाल दिया।उस गिलहरी की तरह मैं भी संगम साहित्य के पुरनानूर और ना नाडियार के कुछ पंक्तियों को अनूदित की और प्रपत्रों के रूप में सौंप दी। वे अपने जीवन का सुनहरा मौका मानती हूं।
आत्तिच्चूडि -
संगम साहित्य काल के कवियों में एक कवयित्री का नाम बहुत प्रसिद्ध है वही अव्वैयार है। उनकी आत्तिच्चूड़ी ‘गागर में सागर भरने' का काव्य है।19वीं शताब्दी में महाकवि सुब्रमण्यम भारती और उनके बाद भारतिदासन आदि महा कवियों ने अव्वैयार की भांति नई आत्तिच्चूडि की रचना की। उनसे प्रेरित होकर डॉक्टर चेयोन ने तिरुक्कुरल आत्तिच्चूडि की रचना की। उन अनुपम काव्यों को डां०पि०के०बी साहब हिंदी में अनुवाद किया है। अगर डॉक्टर पि०के० बी साहब को ‘अनुवाद के पिताजी ' कहे तो वह उन्हें उचित ही होगा।
तमिल कथासाहित्य का अनुवाद-
सन् २००३ में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के एक प्रमुख अनुवादक समूह की सहायता से ‘दक्षिणी कथाएं ‘ नामक एक पुस्तक प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक में तमिल, तेलुगु, कन्नड तथा मलयालम आदि दक्षिण भारतीय भाषाओं की चयनित प्रसिद्ध तीन-तीन ,कुल मिलाकर बारह कहानिकारों की कहानियों का अनुवाद प्रकाशित हुई है। महान अनुवादक जैसे श्री वे० आंजनेय शर्मा, श्री गुप्ता नारायण दास, स्वर्गीय श्री बालशौरि रेड्डो के परिश्रम से ‘भारत के एक हृदय ' होने का तथ्य निभाने का प्रयास अनूदित कहानियों के द्वारा किया गया है।
उपसंहार-
आज का युग कंप्यूटर का युग है। कंप्यूटर का द्वारा अनुवाद आसानी से किया जाता है। लेकिन इसमें साहित्य का जीवन कम होता है। इसलिए आधुनिक अनुवादक मशीन अनुवाद से अधिक मानव सहायता से अनुवादक करने का प्रयास करें। वही परिपूर्ण अनूदित हिंदी साहित्य प्राप्त करने का अच्छा मार्ग होता है।