मेरी उड़ान
मेरी उड़ान
मैंने एयरपोर्ट पर पहुंची, कार से उतरी।
द्वार पर एक जन की पंक्ति खडी रही थी। मैंने सोचा- "अरे, यह क्या है ? क्या यहां भी लैन में खड़े होना है !"
बस, ट्रेन छोड़कर मैंने पंक्तियों में खड़े होने से बचने के लिए उड़ान लेकर सीधे जाने का सपनों में आई लेकिन यहां द्वार पर भी वही बेहाल देखकर उदास हो गई। आई डी कार्ड दिखा कर अंदर प्रवेश की।
लगेज चेकिंग के लिए भी खड़ा ही होना पड़ता था। फिर गेट नंबर ३ के सामने एक लंबी पंक्ति में खड़े होकर मेरी उड़ान के अंदर प्रवेश की। वहां एरहोस्टस घोषित कर रही थी कि कृपया सब लैन में एक एक करके आइए। अपनी अपनी जगह पहुंचने में आसानी होगी।
मुझे याद आया कि एल के जी पंचीकरण के लिए ढाई साल उम्र में से लेकर मैंने सुना पड़ता कि सब लैन में एक एक करके आइए। मेरे मन में उड़ान में बैठकर खुशी से उड़ने की भावनाओं को पीछे घटाकर थोड़ा गुस्सा आया।
यह क्या जमाना है कि हर जगह हर बार किसी न किसी पंक्ति में खड़ा करते हुए चलना है। इस तरह सोचते अपनी कुर्सी पहुंच बैठी थी। मेरी उड़ान धीरे-धीरे छूट निकल गई। अब मैं ने सोचा कि ऊफ ! बच गई। आगे न पंक्ति, न खड़े होना। जीवन में कहां कहां पंक्तियों में खड़े होकर चली गई उन यादों में डूबे आंखों बंदकर बैठी थी लेकिन यह क्या हो रहा है ! केबिन से पैलट की आवाज सुनाई- नमस्कार ! अपनी उड़ान अब लैन में खड़ी है।
तीन उड़ानें हमारे आगे खड़ी हैं। उनके बाद समय पर हमारी उड़ान के टेकऑफ होगी, मैंने बेहोश हो गई।