आंदोलित करते प्रश्न पर
आंदोलित करते प्रश्न पर


दोस्तों, रामायण पढ़ने पर कुछ प्रश्न मन को मथते हैं।
जटायु कौन थे, पक्षी या मनुष्य ?
अधिकांश धारणा है कि जटायु पक्षी थे।
वाल्मीकि रामायण में इन प्रश्नों का समाधान मिलता है।उदाहरण के लिए,
जब रावण सीताजी को हरण कर ले जा रहा था। वे रो - रो कर
राम और लक्ष्मण को पुकार रही थीं। उनकी पुकार सुनकर जटायु रावण के पुष्पक विमान की ओर लपके।
सीता ने उन्हें देखा और
कहा,
'जटायो पश्य, मामार्य ह्रियमानमनाथवत्'
अर्थात्
'हे जटायु, आर्य ?
देखो ,यह राक्षस मुझे अनाथ की भाँति उठाकर ले जा रहा है।'
सीता ने जटायु को ' आर्य ' कह कर संबोधित किया।
इससे सिद्ध होता है कि जटायु पक्षी नहीं थे,
मनुष्य थे,सीता पक्षी को आर्य कह कर संबोधित न करतीं।
लंकापति रावण से सीता को बचाने के लिए जटायु ने रावण से युद्ध किया,किंतु वृद्धा वस्था और दोनों भुजाओं के काट दिए जाने से आहत होकर वे भूमि पर गिर गए और मृत्यु को प्राप्त हुए।
जटायु को पक्षी क्यों कहा गया ?
ये वै विद्वांसस्ते पक्षिणोयेऽविद्वांसस्ते अपक्ष:। –(ताडय ब्राह्मण 14/1/13) अर्थात
जो विद्वान हैं वे पक्षी हैं अर्थात वे अपना पक्ष रखने में सक्षम होते हैं और अविद्वान या मूर्ख वे हैं जो
अपक्ष यानि पक्ष रहित होते हैं।
विद्वानों के दो पक्ष होते हैं, ज्ञान और कर्म।वाल्मीकि रामायण में जटायु को द्विज श्र
ेष्ठ लिखा है।
एक अन्य कथा के अनुसार
जटायु राजा क्रूड़ली के पुत्र थे जो सम्पाति नामक समुद्र तट पर स्थापित एक छोटे राष्ट्र के राजा थे।राजा क्रूड़ली के दो पुत्र थे। जटायु और सम्पाति । राजा क्रूड़ली ने अपनी दोनों संतानों को बटुक मुनि के यहाँ विज्ञान, ज्ञान और योग का अध्ययन करने भेजा था। बटुक मुनि के यहाँ और भी शिष्य अध्ययन करते थे जिनमें हनुमान ,श्वेतकेतु, रोहिणीकेतु, रावण और कुम्भकरण भी विज्ञान के बहुत से तत्त्वों को अध्ययन करते थे।
जटायु और सम्पाति नाना यन्त्रों का निर्माण करने में रत्त रहते थे। उनकी गणना बड़े वैज्ञानिकों में होती थी।इन्हें पक्षी की संज्ञा दी गई ,वह प्रतीकात्मक है, इसे इनके पक्षी की भाँति अपने यंत्रो में बैठ कर अंतरिक्ष में गति करने की क्षमता के कारण कहा गया।जैसे आज के समय में लोग वायुयानों व रॉकेट का प्रयोग करते हैं,ठीक वैसे ही यह भी करते थे।
एक बार जब वे अपने यान में अंतरिक्ष यात्रा कर रहे थे,यान का पिछला भाग दुर्घटनाग्रस्त होकर यान से दूर जा गिरा।
दोनों सुरक्षित बच गए, मगर एक दूसरे का उन्हें कोई पता न चला। दोनों ने मान लिया कि वह ही एकमात्र जीवित थे।
कालांतर में जटायु पंचवटी के निकट ही गृध्रकूट नामक स्थान के राजा हुए।आयु पूरी करने के बाद अपने पुत्रों को राजपाट सौंप कर वे वानप्रस्थी हो गये।
सीता माँ की रक्षा करते हुए जटायु घायल होकर जिस स्थान पर गिरे वह 'जटायु नेचर पार्क' या 'जटायु राॅक' भारत के केरल में स्थित है।