आँचल की छाँव
आँचल की छाँव
गरम गरम चाय पुष्पा को देकर स्वयं भी उसके साथ बैठ कर चाय पीने लगी। एक लंबे अंतराल के बाद सुबह की चाय सुकून से पी रही थीं।
बच्चे भी सही निर्णय लेते हैं आज सुगंधा को महसूस हो रहा था, रोहन की बातें कानों में गुँजने लगी।
“माँ आप हमेशा से किसी विधवा एवं बेसहारा की मदद करना चाहती थीं लगता है ईश्वर ने आपकी सुन ली।
आप मेरे दोस्त समीर की विधवा को आप अगर शरण दें तो फिर से वह जीने की कोशिश करे। मायके एवं ससुराल वालों ने उसे त्याग दिया है।”
“बेटा मैं समझी नहीं; क्या कहना चाहते हो ?”
कल तक एक पुष्प के समान पुष्पा खिली रहती थी, आज वह आश्रयगृह में कैद होने को विवश है। अगर आप उसको बेटी मान कर अपने साथ रख लेंगी तो फिर आपको एक बेटी मिल जायेगी एवं पुष्पा को माँ।”
“एक हादसे में उसकी इज्जत एवं सुहाग दोनों लूट गये। पुष्पा माँ बनने वाली है अकेली महिला जिसका कोई ठिकाना नहीं है।
“अपने पूराने गाँव वाले घर में, उसे अपनी बहू या बेटी मान कर साथ रख लें तो आप भी खुश रहेंगी एवं मैं भी निश्चिंत होकर ड्यूटी कर पाऊँगा क्योंकि मुझे लगता है मैंने उसकी जान बचाई पर वह तो मृत समान है। आपके निरंतर स्नेह वर्षा से शायद वह खिल जाये आपको भी बहुओं के ताने से छूटकारा मिल जायेंगे।” चाय कब की खत्म हो चुकी थी, माँ अपलक पुष्पा को निहारते हुए निहाल हो रही थी। तंन्द्रा भंग हुई पुष्पा की आवाज सुनकर।
“क्या सोच रही हैं माँ ?”
“कुछ नहीं बिटिया तेरे बहाने ही सही लंबे अरसे के बाद खुला आसमान फिर से देखने का मौका मिला है। दो रोटियां बनाने में असमर्थ थी, जिस घर में डोली आई उस घर से विशेष लगाव था परंतु मजबूरी वश अब तक बहू-बेटों के संग फ्लैट में रह रही थी। आज तूने मुझे सहारा दिया। वर्षों बाद खुला आसमान देखी हूँ।"
"माँ अहसान मंद तो मैं आपकी हूँ आपने एक पीड़िता की मदद की। समीर के प्यार के सहारे जीना आसान नहीं था क्योंकि एक जवान औरत के कालिख लगे चेहरे पर कई हाथ और कालिख पोतने को उठ जाते हैं।"आपके सहारा देने मात्र से कालिख धूल ने लगे हैं, धन्यवाद माँ।"
"धन्यवाद तो मुझे कहना है बेटी, आज तेरे बदौलत वर्षों सुबह की सुनहरी किरणों ने मेरे तन-मन को छूआ है। भूल जाओ वह काली रात वक्त के साथ कालिख धूल जायेगी। बस पेट म़े पल रही नन्हीं सी जान की खातिर बस माँ बनने का इंतजार करो। उसकी एक झलक से सवेरा हो जायेगा जीवन में स्याह रातें धूमिल हो जायेंगी।"
"हाँ माँ आपने सही कहा।" ऐसा कहते हुए पुष्पा माँ की गोद में नन्हीं सी बच्ची बन आँचल की छाँव में आँखें बंद कर ली। उसके चेहरे पर सुकून देख माँ की ममता हिलोरें मारने लगी।
