आक्रोश

आक्रोश

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आज मधु और रोशन के घर एक नन्ही परी आई। सबकी खुशी का ठिकाना नहीं था। परी बड़ी हो रही थी और सबकी लाड़ली। उसकी मासुमियत सबका मन हर लेती। तुतलाती, नये गानों पर नाचती, कभी घर-घर खेलती। आने-जाने वाले जो भी रास्ते में मिलते बिना बात किये नहीं निकलते।

रोशन जब भी आफिस से आता, परी की चुलबुली बातें सारी थकान मिटा देती। जिन्दगी का अच्छा समय जल्दी जाता है ,परी कक्षा चार में आ गयी। मधु और रोशन ने बहुत अच्छे संसकार दिये। जिनसे मिलती सभी से बात करती। हमेशा पापा-मम्मी को कहानी-किस्से सुनाती। पास-पड़ोस में जाती वहाँ अपनी सहेलियों के घर गुड़िया का घर बनाती और हर बार मम्मी से नयी फरमाइश करती।

मम्मी स्कूल से आते ही बताया कि हम अनाथालय जा रहे हैं, बहुत खाने का सामान बाटेंगे। कितना अच्छा लगेगा, दिवाली भी आने वाली है, हम सब उनके साथ दिवाली मनायेंगे।

शाम को परी ने मम्मी के साथ जाकर बहुत सामान खरीदा और शाम को दादा-दादी, नाना-नानी को फोन पर किस्से सुनाये। रोज का काम था, कुछ भी बात होती मम्मी डाँटती या स्कूल में कुछ अच्छा-बुरा होता, तुरंत फोन मिलाती। आज समायरा, उसकी सहेली से अनबन हुई तो मम्मी को बताया। वो आज समायरा से बात नहीं करेगी, उसने एक बच्चे को धक्का दे दिया। मम्मी-पापा ने समझाया कि अगली बार वो ऐसा नहीं करेगी।

समायरा बुला रही है तब उसके साथ वादा लेकर खेलने लगी थी। किसी का दिल नहीं दुखाती थी। बहुत से बच्चे शैतान थे, उनसे दूर ही रहती।

हमेशा कहती पुलिस में जाऊँगी। गन्दे लोगों को जेल भेजुँगी। परी पढ़ाई मे भी बहुत होशियार थी। सभी स्कुल में पंसद करते थे।

वैन ड्राइवर से लेकर सभी अध्यापक तक, सब खुश रहते। छुट्टी के दिन भी पापा के साथ पढ़ाई के खेल खेलती।

आज रोशन ने बताया, वो दो दिन के लिये ऑफिस के काम से बाहर जा रहा है। परी दौड़ती हुई आई। पापा एक पुलिस की ड्रेस लाना मेरे लिये और एक प्यारी सी गुड़िया भी।

बिल्कुल लेकर आऊँगा। परी को गोद में उठाते हुये रोशन ने कहा।

और फोन पर बताऊँगी।

मधु हँसने लगी। ये लिस्ट बड़ी होने लगी है, परी बस इतना काफी है मँगाने के लिये।

सब हँसने लगे।

रोशन ऑफिस चला गया। परी को भी मधु वैन मे बैठा आई। घर का सारा काम खत्म कर पड़ोस में गयी। समायरा की मम्मी अच्छी दोस्त थी।

आओ मधु आज काम जल्दी हो गया।

हाँ, आज रोशन नहीं है तो खाने का काम ही नहीं लग रहा।

हाँ लगता है सारा काम पति का ही होता है।

दोनों हँस-हँस कर बातेंं करती रही।

मधु ने कहा- सब्जी लानी है चलोगी ?

समायरा की मम्मी दोनों सब्जी लेने गयी।

मधु ने कहा- परी और समायरा के आने का भी समय हो गया चलो जल्दी। दोनों के लिये खाने का सामान ले लिया खुश हो जायेंगी।

मधु घर आ गयी। परी की वैन को देर हो गयी सोचकर समायरा के घर गयी।

वैन नहीं आई। समायरा भागती हुई आई- आंटी मैं तो बहुत देर से आ गयी। हाँम दस मिनट हुये हैं।

समायरा की मम्मी ने बताया। क्यूँँ समायरा, परी कँहा है ? परी तो घर चली गयी थी। परी का तीसरी मन्जिल पर था घर और समायरा का पहली।

मधु घबरा गयी। वैन वाले का फोन भी नहीं मिल रहा था। ये बार बार बिजी क्यूँ आ रहा है ?

मधु घबरा मत मैंं मिलाती हूँ।

समायरा की मम्मी ने कहा। वैन वाले का नम्बर मिल गया। उसने बताया समायरा और परी दोनों साथ ही गये थे। मधु ने सब जगह पूछा, जहाँ वो जा सकती थी, शाम हो गयी पर परी का कहीं पता नहीं था। सोसायटी के सब लोग ढुंढने में लगे रहे।

रोशन को फोन कर दिया। रोशन भी घर आने के लिये निकल गया। सबको घबराहट हो गई कि कँहा गयी। परी सीधे घर ही आती थी। सब अपने घर चले गये। मधु रो रो कर पागल सी हो गयी। कभी इधर-उधर घुमती। कभी चिखती परी.....।

परी कहाँ से ले आऊँ।

बहुत बार दीवार पर सिर मारती। क्या करुँ, मेरी बच्ची रो रही होगी मेरे लिये। जमाना खराब है, रोज सुनने में आता है। मधु सोचने लगी, समायरा के घर से मेरे घर तक दूसरी मन्जिल पर तो कोई नहीं रहता, ताला था। एक बार देख लूँँ, देखा तो ताला नहीं था। घबराहट में हाथ काँप रहे थे। डोर बैल बजायी।

एक लड़के ने दरवाजा खोला होगा कोई तेइस-चौबिस साल का।

हैलो आंटी।

मधु ने कहा- तुम तो नहीं रहते थे यहाँ। आंटी में दिन की शिफ्ट करता हूँ। देर रात को आता हूँ। कभी नहीं भी आता। क्या हुआ कुछ काम था।

हाँ, हाँ, मेरी बेटी परी स्कूल से आई पर घर नहीं आई। दस साल की है। देखा क्या तुमने ?

नहीं आंटी मैं सो रहा था। अभी जाने ही वाला हुँ ऑफिस।

ओह, कुछ पता चले तो बताना।

हाँ, हाँ, तभी समायरा की मम्मी भी आ गयी। मैंने सोचा देखूँ मधु को। तुम यहीं मिल गयी। क्या कुछ पता चला..। नहीं, बस ये घर नहीं पूछा था तो सोचा एक नजर देख लूँ। ये आज ही दिखे घर में।

समायरा की मम्मी ने कहा- हाँ रहते नहीं, बंद ही रहता है ये घर। तभी घर की तरफ मुड़ते ही मधु को जैसे कुछ लगा।

गीली मिट्टी के जूते के निशान, इतने छोटे पैर के निशान, परी.. परी.. परी... है यहाँ।

जोर से धक्का देकर उस लड़के को अंदर भागी। समायरा की मम्मी ने भी शोर मचाया।

तभी अंदर दो और लड़के परी का मुँह हाथ से दबाये, परी खून से लथपथ देख, मधु का खून खौल गया। वो परी को छिनने लगी, वो लड़के इतने सभंलते की मधु ने फलों के ऊपर रखा चाकू उठाया और उस लड़के को मारती रही।

रोये जा रही थी, हैवानों मेरी बच्ची जरा सी जान का क्या हाल बना दिया एक-एक को मारूँगी । समायरा की मम्मी ने हाथ पकड़ लिया।

रूक मधु परी मिल गयी इतना बहुत है, इन लड़कों को सजा पुलिस देगी।

पुलिस आती ही होगी। चाकू लगे लड़के को, लड़का शोर मचता देख भागने लगा। बाहर सभी सोसायटी के लोग आ गये। तीनों लड़के पकडे़ गये। पुलिस को सौंप दिये, चाकू जिसको मारा था वो भी बच गया। परी बेहोश थी। हास्पिटल ले गये, परी को गहरी चोटें थी। सदमे में थी। रोशन आ गया। रोशन का भी बुरा हाल था। पुलिस को लड़को ने बताया कि तीसरी मन्जिल पर जाते हुये घर में खींच लिया था परी को। सब नशे में थे। सबने परी के चिल्लाने पर उसे मारा और मुँह बंद कर दिया था जिससे आवाज ना हो।

हैवानियत छाई हुई है, माँ घबराई हुई है, मेरे बच्चो पर हैवानों का साया ना छाये, कोई दरिन्दा बेबस बच्चों को ना तड़पाये, दिन-रात ये देश झुलस रहा है, इस दरिन्दगी की आग में, आजकल बच्चों को भी निडर बनाना होगा। हैवानियत को भगाना होगा।


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