आखिरी दिन
आखिरी दिन
सभी दोस्त अमन का इंतजार कर रहे थे, वक़्त सुबह के दस बजे के आसपास का था, कॉलेज का आखिरी दिन होने के वजह से विदाई समारोह का आयोजन हुआ था, कुछ देर में सभी इकट्ठे हो गए हॉल में, फ़िर अमन भी आ गया, किसी की नज़र में नहीं आया पर उनका एक दोस्त राजीव उसने देखा कि अमन के चेहरे में अलग सी बेरुख़ी थी वो पूरी तरह से हताश था। इस तरहा उनका चेहरा लटका हुआ था कि जैसे ज़िंदगी का ही आखिरी दिन हो। राजीव ने उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा कि "भाई हम सब दोस्त हमेशा तेरे साथ रहेंगे" अमन ने सिर्फ सुना कुछ कहा नहीं।
सभी लोग आ चुके थे और कार्यक्रम भी शुरू हो गया था, पर अमन का मुंह दाईं ओर ही मुड़ा हुआ था जहाँ लड़कियाँ बैठी थीं। वो स्वाति को देख रहा था और स्वाति उन्हें देख रहीं थी, दोनों एक दूसरे की आँखों में देख कर बस यही सोच रहे थे कि क्या प्यार यही होता है ? तीन साल पहले मिले दोस्त बने फ़िर प्यार हुआ फ़िर एक दूसरे की ज़िंदगी बने और जैसे ही तीन साल ख़त्म हुए तो एक दूजे को अलविदा कह कर चल पड़ो अपने अपने रस्ते ! कुछ घंटे ऐसे ही बीत गए और कार्यक्रम ख़त्म हुआ फ़िर सब एक दूसरे से मिलने लगे, कहीं दोस्ती के आँसू टपक रहे थे, कहीं भविष्य की चर्चा चल रहीं थी, और यहाँ अमन और स्वाति एक दूसरे के नजदीक आए स्वाति ने थोड़ी समझदारी दिखाई अपने चेहरे के पीछे का दर्द छुपाए रखा। वो हँस कर बातें करने लगी पर अमन ग़मगीन था मुंह से ज्यादा कुछ लफ्ज़ निकल ही नहीं रहे थे उनके, स्वाति ने अपने जज़्बात संभाले रखें, अमन बस उन्हें देखे जा रहा था और इस तरहा से उनके चेहरे को देख रहा था कि जैसे दिमाग़ में उनकी तस्वीर बना रहा हो, पलकें भी नहीं झपक रही थी उनकी, कुछ वक़्त बस यूँ ही देखते रहे एक दूसरे को। अब तो स्वाति भी मायूस हो चुकी थी फ़िर धीरे धीरे दोनों की आँख से इक दर्द की लहर निकल पड़ी, और बाहर से आवाज़ आयी कि हॉल खाली करो अब। सब दरवाजे की और चले बाहर निकलने को, अमन और स्वाति फ़िर एक दूसरे को देखते रहे, उस वक़्त उनकी धड़कने तेज़ रफ्तार से भाग रहीं थी की जैसे कुछ छूट रहा हो, दोनों हताशा की सीमा पार कर चुके थे । अपनी जगह से हिल भी नहीं रहे थे और हॉल बस खाली ही हो रहा था, दोनों की आँख से आँसू ओ की धार बह रहीं थीं ।तभी अमन का दोस्त राजीव आया और उसने स्वाति की एक दोस्त को इशारा किया की स्वाति को ले जाए यहाँ से, राजीव को डर था कि किसी को पता न चले और हंगामा न हो, स्वाति की दोस्त ने स्वाति का हाथ पकड़ कर खींचा पर वो हिली नहीं तो उसने कहा "चलो अब यहाँ से" पर स्वाति ने कुछ जवाब न दिया । बस खड़ी थी और अमन को देख रहीं थी, फ़िर राजीव ने अमन को कहा "भाई चल अब यहाँ से" उसने ये कहकर कंधे पर हाथ रखा पर उसने भी कुछ जवाब न दिया। राजीव ने उनका हाथ पकड़ा और उनके सामने देखा तो वो अमन अब था ही नहीं, बेजान जिस्म था, राजीव के पैरों से ज़मीन खिसक गई। स्वाति की दोस्त देख रहीं थी, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है, उसने स्वाति को हिलाया तो वो गिर पड़ी।यहाँ अमन गिरा पर उसको राजीव ने पकड़ लिया, पर कुछ था नहीं उनके अंदर अब, अमन की आत्मा और स्वाति की आत्मा तो कब की हॉल के बाहर निकल गई थी और अपनी दुनिया बसाने एक दूजे का हाथ पकड़ के जा रहीं थी !
हुआ यूँ कि ज्यादा दर्द और एक दूसरे के बिना रहने के डर की वजह से दोनों को छोटा सा हार्ट अटैक आया और वहीं धड़कने रुक गईं, राजीव को डर था की इनके प्यार के बारे में किसी को पता न चले और हंगामा न हो, पर यहाँ तो कुछ और ही हो गया ।