आहुति prompt-1
आहुति prompt-1
एक अदने से वायरस ने 2020 में हम मानवों की दुनिया पूर्णरूपेण बदल दी थी और यह स्पष्ट कर दिया था कि अपने आपको सर्वश्रेष्ठ समझने वाले हम लोग प्रकृति के सामने कुछ नहीं हैं, कुछ भी। 2020 के बीतने के साथ ही ,लगा था कि कोरोना को हमने हरा दिया है। कोरोना के मामले कम होने लगे थे मानव ने वायरस को मात देने के लिए कई नयी वैक्सीन का निर्माण भी कर लिया था।
नयी उम्मीद के साथ हम सब ने 2021 में प्रवेश किया था। कोरोना ने हमें बहुत कुछ सीखा और समझा दिया था। लेकिन 2021 में आयी कोरोना की दूसरी लहर ने हम सब को वह मंजर दिखाया, जिसकी हमने कभी कल्पना तक नहीं की थी। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा, जिसने किसी अपने को कोरोना के कारण नहीं खोया हो। दूसरी लहर ने एक बार फिर हम सबको भौतिक रूप से एक -दूसरे से दूर कर दिया था, लेकिन आत्मिक रूप से हम एक -दूसरे के बहुत नज़दीक आ गए थे। ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए ऑक्सीजन लंगर लगाए गए, कोरोना पीड़ित मरीजों के लिए घर पर बने हुए खाने की आपूर्ति के लिए कई भामाशाह आगे आये। आपसी सहयोग और सहानुभूति की कई इबारतें लिखी गयी। जहाँ अपने हमसे दूर हो गए, वहीं परायों ने हमारा हाथ थामा।
एक हॉस्पिटल में नर्स स्नेहा ने स्वयं ने बड़े नज़दीक से कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मानवता के कई रंग देख डाले थे। डॉक्टर्स के लाख प्रयासों के बाद भी लोग मौत के मुँह में जा रहे थे। उससे भी ज्यादा कष्टप्रद था कि ,"कुछ मामलों में घरवाले अपनों के शव लेने से इंकार कर रहे थे।"मौत के तांडव ने लोगों के दिल में दहशत भर दी थी। मरना वाकई में डरावना है। मृत्यु का ख्याल मात्र लोगों में सनसनी पैदा कर देता है।
स्नेहा के पति सौरभ का ट्रेवल एंड टूर का बिज़नेस था। स्नेहा ने अपने पति की मदद से ऐसे लोगों की अंतिम क्रिया ससम्मान करने का बीड़ा उठाया। जिन भी मृतक लोगों के देह उनके परिवार वाले लेने से मना कर देते थे, स्नेहा और सौरभ उन शवों की उनके धर्म के अनुसार अंतिम क्रिया करते थे।
हॉस्पिटल तो वैसे भी कोरोना संक्रमण का हॉटस्पॉट होता है। स्नेहा भी कोरोना वायरस से संक्रमित हो गयी और उसके साथ ही सौरभ भी। स्नेहा और सौरभ का 1 वर्षीय बेटा ध्रुव पूर्णरूपेण ठीक था, लोगों की दुआओं की बदौलत उसकी रिपोर्ट नकारात्मक थी। स्नेहा और सौरभ को हॉस्पिटल में एडमिट करना था। दोनों के हॉस्पिटल में जाने के बाद ध्रुव के देखभाल करने वाला कोई नहीं था।
स्नेहा के ससुराल वालों और पीहर वालों दोनों ने स्नेहा और सौरभ से दूरी बना रखी थी। कोरोना की प्रथम लहर के आने के बाद से ही परिवार वाले स्नेहा पर नौकरी छोड़ने का दबाव बना रहे थे। लेकिन स्नेहा ने नौकरी छोड़ने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि ," अब जब मानवता के सामने इतना बड़ा संकट आया हुआ है, तब मैं अपने फ़र्ज़ से कैसे पीछे हट सकती हूँ। कल को ध्रुव जब बड़ा होगा, तब मैं उसे किस मुँह से बताऊँगी कि उसकी मम्मी ने मानवता को भुलाकर संकट के समय नौकरी छोड़ दी। नैतिकता की सभी बातें बेमानी हैं, यदि उन्हें अपने आचरण में न उतारा जाए।" फिर जब स्नेहा और सौरभ ने लोगों की अंतिम यात्रा में सहयोग करना शुरू किय तो घरवाले अउ भी नाराज़ हो गए थे। सही है, हम सभी चाहते हैं कि महान व्यक्ति इस धरती पर जन्म लें, लेकिन वह हमारे घर पर नहीं बल्कि पड़ोसी के घर पर जन्म लें।
केवल सौरभ था, जो कि स्नेहा के हर फैसले में उसके साथ खड़ा रहा।अब जब दोनों कोरोना पॉजिटिव आ गए थे तो घरवालों ने उनकी किसी भी तरह से मदद करने से इंकार कर दिया बल्कि कहा कि ,"अब भुगतो। हमेशा अपनी मनमानी करते हो।"
स्नेहा और सौरभ के कोरोना पॉजिटिव आने की बात स्नेहा के हॉस्पिटल तक भी पहुँच गयी थी। हॉस्पिटल से लगातार फ़ोन आ रहा था कि ,"एम्बुलेंस भी देते हैं और तुरंत एडमिट हो जाओ।" लेकिन स्नेहा अपनी समस्या किसी को बता नहीं पा रही थी। स्नेहा की नज़दीकी दोस्त चित्रा स्नेहा के बिना कहे उसकी बात समझ गयी थी, लेकिन चित्रा तो स्वयं कोविड वार्ड में डबल ड्यूटी कर रही थी। उसने जब डॉक्टर दिव्या को स्नेहा क बारे में बताया तो डॉक्टर दिव्या ने तुरंत स्नेहा को फ़ोन करवाया और कहा कि, "स्नेहा अगर मुझ पर भरोसा कर सकती हो तो अपने बेटे को मेरे पास छोड़ दो। जब तक तुम और तुम्हारे पति ,दोनों ठीक नहीं हो जाते, तुम्हारे बेटे की देखभाल मैं करूँगी।" अँधा क्या चाहे दो आँखें, स्नेहा ने कहा कि ,"मैडम ,आपसे बेहतर मेरे बेटे की देखभाल कौन कर सकता है ? मैं आपकी ताउम्र कृतज्ञ रहूँगी।"
"कैसी बातें कर रही हो ? तुम तो हम सबकी कोरोना योद्धा हो। तुम और तुम्हारे पति ने जो मानवता के लिए किया है, उसके सामने तो यह कुछ नहीं है। तुम्हारे इस विशाल यज्ञ के लिए मेरी यह छोटी सी आहुति मात्र है। शायद मुझे भी इस यज्ञ का फल मिल जाए। अभी मैं स्वयं एम्बुलेंस लेकर तुम्हारे घर पहुँच रही हूँ।"
"शुक्रिया मैडम।" स्नेहा ने रूँधे गले से इतना सा कहकर फ़ोन रख दिया था।
