Hemisha Shah

Tragedy

1.0  

Hemisha Shah

Tragedy

आ बैल मुझे मार

आ बैल मुझे मार

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अरे ये क्या कर रहे हो। पिछले तीन दिन से सुबह जल्दी ऑफिस जा रहे हो। ठीक से नाश्ता भी नहीं कर रहे हो। ! ऐसे थोड़ी ना होता हैं ? खाना भी खाते हो या नहीं टिफ़िन का। ? और बाहर जाके मीटिंग्स के वक़्त सबकुछ चटर पटर खा लेते हो !! सुनते ही नहीं ! बीमार पड़ जाओगे। " रश्मि चिल्लाई ।

"अरे जानू। बस अब और तीन दिन जाने दे। उसके बाद मेरा प्रोजेक्ट पास हो जाए तो एक करोड़का कॉन्ट्रैक्ट मिलेगा। उसके लिए ही तो ये सब भाग दौड़ रहती हैं .फिर संडेको 

 हम शाही नाश्ता करेंगे सच में। !" मनीष बोला। और हड़बड़ीमें सिर्फ एक केला खाके चला गया .

पुरे एक सालसे मनीष इस प्रोजेक्टपे काम कर रहा था। उसकी कंपनीके लिए ये सबसे बड़ी डील थी अगर सफल हुई तो। .

क्यूँ की इस प्रोजेक्ट के लिए दूसरी तीन कंपनी के टेंडर आ चुके थे.ना आव देखा ना ताव। बस दिन रात उसपे लगा पड़ा था। बस अब तो सिर्फ तीन दिन बाकी थे और उसे फाइनल प्राइसिंग और सब डिसाइड करना था। वक़्त बहोत कम था। खाने का टाइम भी वोह मीटिंग्स में लगा रहता था। बस रास्ते में ही कुछ मगवा लेता था।

पिछले दो दिन से काफी सिरदर्द भी रहता था मगर उसपे ध्यान कहा दे रहा था .

आज से दो दिन लगातार मीटिंग्स हेंडल करने बाहर ही घूमना था और तीसरे दिन फाइनल लिस्टिंग करना था।

सरदर्द उसे छोड़ नहीं रहा था.

आज कुछ ज्यादा ही हालत ख़राब थी। रश्मि को कुछ नहीं बताया क्यूँ की वो परेशान होगी ये सोच कर।

और फिर सुबह हुई और वही भाग दौड़।

दोपहर तीन बजे होटल में कॉन्फरन्स हुई। उस कंपनी के सेक्रेटरी के साथ.

4 बजे मीटिंग ख़त्म होते ही वोह ऑफिस जाने के लिए ड्राइवर को गाड़ी निकालने को  बोला। मगर अचानक सिरदर्द की वजहसे चक्क्रर आये और वोह बेहोश हो गया.  

 ड्राइवर ने देखा। और मनीष साहब को उठा के हॉस्पिटल ले गया रास्ते में उसने रश्मि को भी कॉल कर दिया आने के लिए।

तीन दिन लगातार विटामिन्स के इंजेक्शन और ग्लूकोज़ की बोतल पे मनीष जी रहा था. जब होश आया तब खुद को हॉस्पिटलमें और रश्मि के पास पाया।

"आज कोनसी तारीख हैं?" मनीष हड़बड़या.

"आज सात तारीख हैं। पता हैं तीन दिन से मेरी हालत कैसी थी। तुझे होश ही नहीं आ रहा था। अब जाके सम्भले हो तुम। "रश्मि कुछ ढीले स्वर में बोली.

मनीष ने अपना सर कुटा.आज वोह दिन था जब प्रोजेक्ट सब्मिट करना था.उसने ऑफिस फ़ोन लगाया अपने मैनेजर को। और मैनेजर ने बताया "सर हमने आपकी बिनमौजुदगीमें प्रोजेक्ट तो सब्मिट कर दिया। मगर हम सफल नहीं हुए। प्राइज उनको ज्यादा लगी। "

प्राइज कोनसी रखनी थी ये सिर्फ मनीष ही जानता था। उसने अंत तक ये किसीको नहीं बताया था.वोह अपना सर कूट रहा था। काश थोड़ा सेहत पे भी ध्यान दिया होता तो आज ये नौबत ना आती। बस रस्मी की तरफ बेबस देखता रहा और मन में खुद को कोसते हुए बोला."आ बैल मुझे मार।". 


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