Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

AMIT SAGAR

Inspirational

4.5  

AMIT SAGAR

Inspirational

2003 का लॉकडाउन

2003 का लॉकडाउन

4 mins
87


हमारी जिन्दगी एक खाली किताब की तरह होती है, जिसमें भगवान हमारी  बचपन रुपी कहानी के कुछ पन्ने लिख कर अधूरा छोड़ देता है। पर किताब के कुछ पन्ने लिखने से किताब पूरी नहीं हो जाती, आगे चलकर हमें ही इस किताब को पूरा करना होता है। इस किताब के कुछ पन्नों में हँसी मजाक के किस्से जुड़ते हैं तो कुछ में सुख दुख के प्रसंग लिखे जाते है। इस किताब में प्यार मोहब्बत की दास्ताँ भी बयाँ होती है, और साथ ही झूठ, नफरत, धोखा, बेईमानी और इसके विपरित नेक दिली, सच्चाई, इमान्दारी और वफ़ादारी के वृतांत भी इसी किताब में लिखे जाते है। इसके अतिरिक्त किताब के कुछ पन्नों मे हमारी होनहारी या काबिलियत, या कह लो की हमारी जो श्रेष्ठता है उसके कुछ अंश भी जुड़ते हैं।

हमारी जिन्दगी की किताब की कहानी के मुख्य पात्र भी हम होते है और लेखक भी ही होते हैं। हमारे जीवन कुछ ऐसे मोड़ आते है जो कि हमारी कहानी को रोचक बनाते हैं। कोई जादू दिखाता है तो कोई जादू देखता है, कोई गाने गाता है तो कोई गाने सुनता है, कोई लिखता है तो कोई पढ़ता है। कोई नाचता है तो कोई नचाता है।

जिस तरह भगवान ने सबके जीवन की किताबें गढ़ी थी, उसी तरह मेरी जिन्दगी की किताब भी खुल चुकी थी। भगवान को जो लिखना था वो लिख चुका था, अब बारी थी मेरी, तो ज्यादा कुछ ना कहकर बात करता हूँ अपनी किताब के काबिलियत के पन्नों से कि मुझ में भी खुमार छाया था लिखने का, बात है 2002 की जब मेरी उम्र 15 साल थी। मैने भी कहानी, कवितायें और वो सबकुछ लिखना शुरू किया था जो मैंने पढ़ा या देखा या सुना था। वो अच्छा था या बुरा था मुझे नहीं पता था, मुझे तो बस दिन रात लिखने कि खुमारी छायी थी। पर इस खुमारी की कमर जिम्मेदारीयों ने ऐसी तोड़ी कि मुँह से आह तक ना निकली और मेरा लिखने का कलम टूट के रह गया। 2003 में मेरे लेखन पर लॉकडाउन लग चुका था। पर कलम टूटने से किताबें बन्द नहीं हो जाती इच्छाएं और उम्मीदें कभी नहीं मरती, मेरे लिखने की ख्वाहिशों का दिया अब भी दिन-ओ-दुनिया मे उजागार होने को किसी बन्द ताबूत में फड़फड़ा रहा था। पर उस ताबूत पर मजबूरी और जिम्मेदारी की ऐसी मिट्टी पड़ी कि वो दफ़न सा हो के रह गया।

अब बात करते हैं कि इस कहानी का लॉकडाउन से क्या मतलब है। अरे भइया सीधा मतलब है। वक्त ना मिलने के कारण में लिखना छोड़ चुका था। लॉकडाउन से पहले तक रोजमर्रा की जिन्दगी सिर्फ पढ़ाई उसके बाद काम और बच्चों के प्यार और सोशल मीडिया में उलझ कर रह गयी थी। लिखने के बहुत सारे आइडिया आते पर सारे आइडिये बिन बुलाये बरातियों की तरह तवज्जो ना पाते, और फिर रुठ कर ना जाने कहाँ चले जाते। शुरुआती लॉकडाउन में तो वही पुराना सब चालू रहा टीवी का चस्का सोशल मीडिया की लत और बच्चों का स्नेह, पर ज्यो ज्यो लॉकडाउन बढ़ता गया जिन्दगी बोझल सी प्रतीत होने लगी घर काट खाने को दौड़ने लगा और बच्चों का लाड़ भी सुबाह शाम का ही रहता, दिन सूने बजार से लगते और रातों को भी नींद ना आती। ऊपर से यह न्यूज वाले दिमाग पर ऐसे हथोड़े बरसातें कि दिमाग की सारी नसें नचीली नागिन की तरह नृत्य करती थी। मन अपने आप से बातें करता और कहता कि हम कहीं जा नहीं सकते कहीं आ नहीं सकते सोशल मीडिया से बोर हो चुके थे न्यूज से डर लगता है अरे इतने लम्बे लॉकडाउन में आखिर करें तो करें क्या, एक लिखने का शौक था पर कलम छोडे़ हुए भी 18 साल हो चुके थे। तभी मन मे ख्याल आया कि क्यों ना फिर से लिखना शुरु किया जाये, पर लिखे क्या ? मन को तो कुछ नहीं भाता है। अरे भइया भायेगा तो तब जब लिखना शुरू करोगे। मन तीव्र से स्वर में दिल से बार बार कह रहा था कि तू अपने कलम की धार को अभी तेज नहीं कर पाया तो कभी नहीं कर पायेगा। और इस तरह दिल ने मन की मानी और फिर से लिखने की ठानी। दिल के सारे जाले दिमाग में लगी जंग और मन में चिपकी धूल धीरे धीरे साफ हो रही थी। अब मेरा कलम हर वक्त लिखने को बेकरार रहता है। और मैं भी अपने इस हुनर को अब ज्यादा से ज्यादा वक्त देता हूँ और देता रहूँगा। कहना तो नहीं चाहता पर कहना जरुरी है कि इस लॉकडाउन में कुछ नुकसान के बदले मेरा बहुत भला हुआ है।

अन्त में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि

कष्टो के हर भँवर से पार हो जायेगा

गर अपने जुनून पर सवार हो जायेगा।



Rate this content
Log in

More hindi story from AMIT SAGAR

Similar hindi story from Inspirational