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Amit Kumar

Abstract

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Amit Kumar

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ज़र्ज़र पिंजर

ज़र्ज़र पिंजर

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तुम कौन हो

चोर हो या पुलिस

मैं कौन हूँ

अभी तक तो

मुझे लगता था

मैं जनता हूँ


और तुम जनता के सेवक

लेकिन जब भी सोचता हूँ

तो पाता हूँ कि

सेवा तो हमेशा

मैंने ही तुम्हारी की है

और बदले में

मुझे सिवाय वादों के

कुछ नहीं मिला


मैंने जब भी जनता से

ऊपर कुछ होने की सोची

तुमने मुझे नीच-दलित

ठग-चोर-गुनेहगार

पापी आदि क्या-क्या

नहीं होने का एहसास

मुझे अपने में होता है

लेकिन तुम तो हमेशा

नेता अभिनेता देश सरकार

का वास्ता देकर


मुझे बहलाते फुसलाते ही आये हो

आज भी लोकडाऊन के बहाने

तुमने मुझे सुरक्षित घर मे क़ैद

कर तो दिया है लेकिन

तुम खुद कहाँ क़ैद हो


मैं मज़दूर निर्बल असहाय

भूखा प्यासा रोटा बिलखता

दर्द और पीड़ा से कराहता

अच्छे दिनों की आस में

तुम पर विश्वास कर

खुद में अविश्वास को

हासिल कर परास्त होंने की 


कगार पर आ गया हूँ

तुम कोरोना से पहले

मुझे मरते देख रहे हो

जाने मेरे जैसे और कितने

मर रहे हैं इस बेबसी में


एक दिन तुम भी मरोगे

मैं पहले जा रहा हूँ

तो क्या तुम भी जल्दी आओगे

मेरा सम्मान आत्ममंथन

सब मुझसे पार जा चुके हैं


मैं एक निर्जर

जर्जर पिंजर मात्र ढहता हुआ

पल-पल अपने अंतिम क्षणों को

प्राप्त होता जा रहा हूँ।


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