ज़ख्म
ज़ख्म
ज़ख्म रिस - रिस के ....तेरे इश्क की गवाही माँगे ,
दर्द को साथ ले ....दर्द की निशानी माँगे!
हमको ये इल्म ना था ...कि इस तरह हम ठगेंगे ऐसे ,
दर्द और इश्क एक साथ ...अपनी कहानी माँगे!
एक गुनाह हमने किया ...जिसकी सज़ा ज़ख्मों से मिली ,
ना मिला इश्क पूरा ,ना मिली सपनों की गली!
ज़ख्म खुल गए रिसने को ,तेरे नाम के साथ ,
सिर्फ ये दिल सुने ,तेरे - मेरे किस्से की फरियाद!
ज़माना आज भी पूछे ...कि उसका नाम बता ,
जो तेरे ज़ख्मों का साथी बना ,तू जिसका नाम ले सदा!
मैं हँस के तब सोचूँ ,कि तू कितना है बड़ा ,
जिसे ज़ख्म देने पर भी ,ये दिल सदा देता है दुआ!!
