ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी एकतरफा करवट
लेते ही बदल जाती है,
बुलन्दी आसमाँ कि छूते ही
इंसानियत भूल जाती है।
कभी पतझड़ में भी गुल
गुल-ए-गुलज़ार जो हुआ
करते थे, वो बहारों में
भी अब गिरते बिखरतें
नाज़ुक पत्तों की तरह
"हार्दिक" खिल उठते है।
ज़िन्दगी एकतरफा करवट
लेते ही बदल जाती है,
बुलन्दी आसमाँ कि छूते ही
इंसानियत भूल जाती है।
कभी पतझड़ में भी गुल
गुल-ए-गुलज़ार जो हुआ
करते थे, वो बहारों में
भी अब गिरते बिखरतें
नाज़ुक पत्तों की तरह
"हार्दिक" खिल उठते है।