ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
वो मंज़िलें और ये राहें, सड़को को घूरती निगाहें
क्या कहना चाहती है, क्या ये रुकना चाहती है
तलाश अब भी जारी है, किस बात की लाचारी है
कुदरत का स्वांग रचाया है, क्या सब मोह माया है
लगती हताश ये ज़िन्दगी, दिल के है पास ये ज़िन्दगी
खुद से निराश ये ज़िन्दगी, फिर भी है खास ये ज़िन्दगी
मन करता है उड़ चले, पर बेड़ियाँ अभी भारी है
कुछ दर्द दिया ज़माने ने, अपनो
ं ने कुछ बेगानों ने
वो दर्द तो हल्का हो जाने दो, इन बेड़ियों को खुल जाने दो
अंदर है कुछ खींचता, जो सपनों को है सींचता
कि बहुत हुआ अब कदम बड़ा, कहीं रह न जाये यूहीं खड़ा
मंज़िलें नयी मिलेगी, रास्ते भी नए होंगे
क्योंकि.... बेशक हताश निराश है ज़िन्दगी
फिर भी नयी आस है ज़िन्दगी
इसीलिए दिल के पास है ज़िन्दगी
और बेहद खास है ज़िन्दगी I