ज़िन्दगी मिली मौत के गले
ज़िन्दगी मिली मौत के गले
दुनिया को कह अलविदा
नए सफर को चले
क्या खूब था नज़ारा
जब ज़िन्दगी मिली मौत के गले
बाँहें फैलाये कर रही थी
मौत ज़िन्दगी का इंतज़ार
ज़िन्दगी ने भी हंसकर किया
मौत का हर निमंत्रण स्वीकार
तलाश थी ख़त्म इन आँखों की
जहाँ हज़ारों सपने थे पले
क्या खूब था नज़ारा
जब ज़िन्दगी मिली मौत के गले
नए सफर की थी
ये एक नई शुरुआत
मंज़िल है कहाँ
था इससे मैं अज्ञात
दूर अलौकिक थी एक रौशनी
जिसके संग हम हो चले
क्या खूब था नज़ारा
जब ज़िन्दगी मिली मौत के गले
थे उदास सब
थी सबकी आँख नम
किसी को न था पता
कि कहाँ चले गए हम
है ये ऐसा सत्य
जो कभी भी न टले
क्या खूब था नज़ारा
जब ज़िन्दगी मिली मौत के गले
अब है एक नई दुनिया
है एक नया आकाश
कितना सकूं है यहाँ
चारों और है नया प्रकाश
अब नए सफर के साथ
उम्मीदों का दीपक जले
दुनिया को कह अलविदा
नए सफर को चले
क्या खूब था नज़ारा
जब ज़िन्दगी मिली मौत के गले।
