ज़िन्दगी की खुशियाँ
ज़िन्दगी की खुशियाँ
खुशियाँ ढूँढने में, ज़िन्दगी निकल जाती है,
मौत से डरते हैं, और मौत ही निगल जाती है,
अरसे बीत गए हैं, मनचाहा न मिला अब तक,
खुशियाँ देने में, खुद की खुशी निकल जाती है।
आशियाने, घरौंदे, महल क्या-क्या ख्वाब नहीं होता,
इन सब के चक्कर में, कौन बर्बाद नहीं होता?
हर रोज़ मिलती है खुशगवार ज़िन्दगी यहां और,
कल का बाकी, पूरा करने में, आज निकल जाता है।
जितनी खुशी बांटकर, ग़म खरीद लाये हैं,
उतने में तो, हम भी शहंशाह हो गए होते,
बदकिस्मती या आदत, कुछ भी कहो तुम,
पर, पर मुस्कान ज़िंदगी कहलाती है।
बस इसी, कशमकश में यूं रोज़ जीतें हैं,
कि कल, अच्छा होगा, इससे बेहतर होगा,
कल तो बीत गया, आज भी निकल रहा है,
अक्सर कल के चक्कर में, आज निकल जाता है।