ज़िन्दगी जीने का नाम है
ज़िन्दगी जीने का नाम है
जब भी कभी लगने लगे
ज़िन्दगी की किताब का हर एक पन्ना
पढ़ लिया है ठीक से समझ लिया है, तब
एक बारी इस चार दीवारी के कमरे से बाहर आकर
भीड़ से भरे बाजार में जा कर देखना,
देखना उस किताब के अगले कई भाग लिखे जा रहे हैं वहां .
किताब के किरदारों को रूबरू देखना है अगर
उन्हें छूकर अगर महसूस करना है उनकी खुशबू उनकी खूबसूरती को
तो लोगों में रहो, ज़िंदगी को गले लगाओ, नहीं तो
कंटे-छंटे किस्से-कहानियों के नपे-तुले किरदार,
बिना गंध की शब्दों की माला में पिरोये हुए
आ जायेंगे इसी कमरे के कोने की मेज से लगी तीसरी दराज़ में तुम्हारे
अगले महीने के मासिक अंक में, पढ़ लेना उसमें की
ज़िन्दगी जीने का नाम है