ज़िन्दगी इत्तेफ़ाक़ सी
ज़िन्दगी इत्तेफ़ाक़ सी
क्या चलती का ही नाम है ज़िन्दगी
फिर भी क्यों लगती ये इत्तेफ़ाक़ सी
कहीं घूरती नज़रों में महसूस होती बड़ी बेबाक सी
टकटकी लगे जैसे ना जाने कहाँ और क्या ताकती
कभी मुस्कुराती सी लगती बेहिसाब कमाल की
हर पल जैसे टूटते जुड़ते हज़ारों ख्वाबों को बुनती
बड़ी तेज़ी से बदहवास जैसे दौड़ती भागती कहीं
फिर भी ना जाने लगती क्यों आज भी इत्तेफ़ाक़ सी
यहाँ इत्तेफ़ाक़न मिलना जैसे बिछड़ना भी इत्तेफ़ाक़ ही
कभी इत्तेफ़ाक़न पाकर…. खो देना भी इत्तेफ़ाक़ ही
बड़ी संजीदगी रिश्तों में कभी इत्तिफ़ाक़न मज़ाक ही
मिलते दर्द इत्तेफ़ाक़न तो क्यों न ख़ुशी लगे इत्तेफ़ाक़ सी
क्या फिर जन्म और मृत्यु भी महज इत्तेफ़ाक़ है
कौंधने लगे सवालात शायद ये भी एक इत्तेफ़ाक़ है!