ज़िन्दगी बिकती है जनाब यहाँ
ज़िन्दगी बिकती है जनाब यहाँ
ज़िन्दगी बिकती है जनाब यहाँ,
चंद टुकड़ो में।
ईमान बिकता है, बंद कमरों में।
दोस्ती की कसमें, परिवार के रिश्ते,
अपनों के सपने, अपनों के अपने,
सब बिकते है जनाब यहाँ,
जिंदगी बिकती है जनाब यहाँ।
जोड़े थे कुछ सिक्के, घर बनाने को,
क्या पता था घर की बोलियाँ, लगती है जनाब यहाँ।
दूर बैठ कर सेक रहे थे हम हाथ,
आँच जलाने को लोगों की बातें बहुत थीं,
सौदे होते हैं दिलों के यहाँ,
हाँ जिन्दगी बिकती है जनाब यहाँ।
इंसान की मासूमियत पर कभी शक नहीं था पहले,
अब पता चला मुखौटे भी बिकते हैं जनाब यहाँ।
लगता था इंसान चलता है अपनी चाल यहाँ,
चल कर बदलता है हर बार चाल नयी,
डोर तो किसी और के हाथ में है इंसानों की,
हाँ इंसान भी बिकता है जनाब यहाँ।
आँखों में सपनें देखें थे किसी के के भूजते हुए,
और बिना वज़ह किसी के सपने सच होते हुए,
क्या पता था हमें, सपने भी बिकते हैं जनाब यहाँ।
रूठते हुए अपनों को देखा था,
दूर जाते हुए अपनों को देखा था,
नहीं देखा था गैरों को करीब आते बिना वजह,
बिना वजह यूँ मुस्कुरा कर बात करते हुए,
हाँ रिश्ते भी बिकते हैं जनाब यहाँ।
जिंदगी बिकती है जनाब यहाँ,
चंद टुकड़ो में।।