ज़िंदा नही हम लाश हैं
ज़िंदा नही हम लाश हैं
अनायास मरघट पर पहुंच,
एक आदमी कुछ डर गया,
कुछ आधी जली कुछ जल रही,
लाशों को देख सिहर गया,
डरता हुआ तब देख उसको,
एक लाश ने कुछ यूं कहा,
उसके भय सन्ताप का,
समाधान कुछ ऐसे दिया,
क्यों डर रहे हो तुम यूं हमसे,
ज़िंदा नहीं हम लाश हैं,
ना बोलते ना सोचते,
समझ लो जैसे पलाश हैं,
हम छल नहीं सकते किसी को,
धोखे से या चाल से,
ना ही पीड़ा दे सकेंगे,
अपनी बातों से या विचार से,
डरना है तो डरो उनसे,
जो ज़िंदा धरा पर हैं अभी,
आघात कर सकते हैं तुम पर,
या चोट दे सकते कभी,
हमारा नहीं अब कुछ धरा पर,
स्वार्थ ना कोई रहा,
मोह से अब मुक्त हैं हम,
व्यर्थ ही तू डर रहा,
डर तुझे हमसे है अब क्या,
तू समर्थ सब रूप में,
असहाय हैं हम जल रहे,
और तू ये जीवन जी रहा,
हम हीन बुद्धि से हैं,
कोई षड्यंत्र रच सकते नहीं,
या किसी भी बात पर,
गुमराह कर सकते नहीं,
लोभ से अब दूर हैं हम,
द्वेष ना हममें रहा,
राख का बस ढेर हम,
फिर तो क्यों हमसे डर रहा,
डरना तुझे तो चाहिए,
कुटिल मनुज व्यवहार से,
या आत्म से मृत हो चुके,
जीवित जनों के वार से,
जो बोलते कुछ और ,
मन में सोचते कुछ और ही,
विचित्र है तो भी मनुज,
कि उनसे तू डरता नहीं,
हम तो हैं गुमनाम,
ख़ुद की हमें तलाश है,
दर्द क्या देंगे तुझे,
ज़िंदा नहीं हम लाश हैं।
