ज़िम्मेदारियाँ
ज़िम्मेदारियाँ
लगता है सबको अब हमें ख़ुद
के पैरों को उठाने का जोश नहीं है
अब कैसे समझाए उन्हें हम में भी
दौड़ने की ख़्वाहिश अभी बाकी है
हमारा सहारा समझकर लकड़ी की
छड़ी हाथ में पकड़ा देते है
अब उन्हें क्या मालूम यह तो
ज़िम्मेदारियों के बोझ से हुए भारी है।
