यूँ तो रोज ही
यूँ तो रोज ही
यूँ तो, रोज ही, दिल में सजाती
हूँ, रंगोली तेरी यादों की,
यूँ तो, रोज ही, पहनती हूँ नया,
परिधान अश्रुओं का,
यूँ तो, रोज ही, चखती हूँ
मिठाई तेरे दिए दर्द की,
यूँ तो, रोज ही, बदलती हूँ मैं,
बन्धवार, आशाओं कि,
यूँ तो, रोज ही, जलाती हूँ
तेरे इंतजार के दीए,
यूँ तो रोज ही फोड़ती हूँ मैं
लड़ियाँ बीते लम्हों की,
यूँ तो रोज ही लगाती हूँ बिखरे
हुए सपनों के मेले,
यूँ तो रोज ही, मनाती हूँ जश्न
टूटे अरमानों का अकेले,
पर फिर भी न जाने बरस
कितने ही बीत गए,
मुझे दीवाली मनाए हुए।
