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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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यकीनन

यकीनन

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सुरेन्द्र कुमार सिंह चांस

पर्यावरण प्रदूषण के आतंक से

भयभीत होकर कांप रही है

ठीक ठीक उसी तरह जैसे

मनुष्यता कांपता है

अपने आतंक से।

वैचारिक प्रदूषण जितना बढ़ रहा है

उतना ही लोकप्रिय हो रहा है

आतंकवादियों ने बंदूक उठायी

कहा हम धर्म बचा रहे हैं

राजनीतिज्ञों योजनाएं बनायी

तकरीर कर रहे हैं

हम धर्म बचा रहे हैं।

सब कुछ अस्त व्यस्त और

व्यवस्थित रूप से जर्जर हो चला है

हर धर्म में सामाजिक रूप से मान्य

धार्मिक काम करने वाले भी

उसी तरह से कांप रहे हैं

जैसे मनुष्य कांप रहा है

आतंक से

जैसे पृथ्वी कांप रही है

पर्यावरण प्रदूषण से।

मिट्टी का मनुष्य

पृथ्वी की तरह है

और वो समझ रहा है किस तरह

प्रकृति खुद पृथ्वी को

प्रदूषण बचाने हेतु सक्रिय है

और आदमी भी, प्रकृति से प्राप्त 

अपने सर्वशक्तिशाली हथियार

मनुष्यता को धारण किये हुये

जीवन युद्ध में सक्रिय है।


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