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bhagawati vyas

Abstract

4.7  

bhagawati vyas

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" यहीं गरीबी पलना है "

" यहीं गरीबी पलना है "

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घुटन अभावों में होती है,

यहीं गरीबी पलना है !

रोज जिंदगी अकसर ठगती,

लगती जैसे छलना है !


चाहे से भी नहीं मिले कुछ,

सब प्रयास पर निर्भर हैं !

सफर कठिन भी लगे सुहाना,

सोच बनाती दुष्कर है !

लगे सफलता दूर खड़ी है,

नित नवीन सी ललना है !


सहज नहीं कुछ भी पाना जब,

तन, मन टूटा करता है !

कमजोरी पर विजय पा गए,

अंधकार तब डरता है !

मंजिल पाना चाह अगर है,

वक्त मुताबिक ढलना है !


बनें गुणी जब भगे गरीबी,

सदा हौंसले कायम हों !

खुशियों को भी कभी न तरसे,

बाजू में इतना दम हो !

वक्त खड़ा हो अपने द्वारे,

हाथ उसे ही मलना है !


है विपन्नता सबक सिखाती,

भय की कोई बात नहीं !

अंधियारा निगले उजियारा,

मिलती है सौगात यहीं !

अभिशाप बने वरदान यहाँ ,

 अमृत फल यही चखना है !


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