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Baniya Shayar

Inspirational

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Baniya Shayar

Inspirational

यही ज़िंदगी है

यही ज़िंदगी है

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था मांगा जिन्होंने मुझे मंदिरों में

मुझे इस जहां में जो लेकर हैं आए

मुझे देखने को जिन आंखों में दम है

मेरे होने से जिनका जीवन सफल है 


उन्हें कैसे कह दूं कि मरना है मुझको

मेरा ज़िस्त से कब का मन भर चुका है

ये जीवन नहीं ...है दुखों का बसेरा

मुझे इस बसेरे में रहना नहीं है

मुझे अब इसे और सहना नहीं है


जिस आंगन की माटी को चाटा है मैंने

जहां मैने गिरना संभलना भी सीखा

जहां मक्खियों को पकड़ने की कोशिश 

में सर्दी की धूपों में सो जाया करता 


वो आंगन मेरी लाश देखेगा कैसे

वो माटी मुझे चूमने के इरादे

से पत्थर का सीना न क्यों चीर देगी

मेरी लाश पर भिनभिनाती वो मक्खी

कभी मेरे बचपन की साथी रही थी 


वो पलना वो वॉकर मुझे साइकिल भी

मेरी देखकर सोचती होगी मुझ को

ज़रूरत नहीं आज उनकी मुझे के

मुझे आज कांधों पे ले जाना होगा 


चलो मैं लटक जाऊं पंखे से लेकिन

मगर मैने सोचा है पंखे का दुख भी

वो पंखा जो लाया गया था मेरी ही

सहूलत की ख़ातिर वो दिन रात घूमे


मुझे चैन देने की कोशिश में और जब

उसे इल्म होगा जो अच्छे से सोता 

था उसकी हवाओं में अब तू ही ज़रिया

बनेगा उसी शख़्स की मौत का तो

वो बेजान दुख अपना किसको कहेगा




जिन्होंने हमेशा मेरी मुश्किलों को

हसीं ही हसीं में हवा कर दिया था 

मेरे दोस्त इक दूसरे को गले से

लगाकर अकेले में रोते रहेंगे 


मैं कैसे सबब उनके अश्कों का बनकर

सभी मुस्कुराती हुई यादों का अब

उठा दूं जनाज़ा नहीं ये ग़लत है 


वो बहनें जिन्होंने मुझे मां सा पाला

मुझे गोद उठाकर इधर से उधर दिन

न देखा न देखी कभी रात उन्होंने

निवाला निवाला खिलाने की कोशिश

कभी सिर्फ़ चुप ही कराने की कोशिश

में सारी हमेशा लगी ही रही हैं 


मेरे वास्ते आज भी जो ज़माने

की सब आफतों से हैं भिड़ने को राज़ी

उन्हें कैसे कह दूं की मैं इस ज़माने 

के रीति रिवाजों से तंग आ चुका हूं


उन्हें कैसे कह दूं कि अब से कभी भी

मैं राखी बंधाने न आया करूंगा

मेरे नंबरों पे मिलाया न करना 

कभी फ़ोन मैं भी मिला कब सकूंगा

मैं अब सिर्फ़ यादों में आया करूंगा 


नहीं मैं नहीं देख सकता कि मेरे

सब अपने मुझे याद करके यूं रोए

भले चलती दुनिया न थकती कभी भी

किसी के भी जाने से रुकती नहीं है


मगर जिनकी दुनिया ही मुझ से बनी है

मैं दुनिया उन्हीं की उन्हीं से यूं छीनूं

नहीं ये मुझे हक़ ही हासिल नहीं है 


अंधेरो में जीना हो या रोशनी में

हो कांटों पे चलना या हो मखमलों पे

मैं तनहा रहूं या रहूं महफिलों में

सहूलत मगर मुझको मरने की हरगिज़

मिली ही नहीं है सभी सूरतों में


सभी मुश्किलों में मुझे पेड़ बनकर

खड़ा रहना होगा मैं ये कह रहा हूं

हां मैं चाहता हूं मैं मर जाऊं लेकिन

मुझे हर गमीं में मुझे हर खुशी में


मुझे देख कर मुस्कुराते लबों की

सलामत रहे मुस्कुराहट इसी के 

लिए मुझको जीना पड़ेगा हां बेशक

पड़ेगा में वो लज़्ज़ते जिंदगी ही 

नहीं है मगर अब जो भी है सही है

यही ज़िंदगी है.. यही ज़िंदगी है..!!


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