सामने आ (ग़ज़ल)
सामने आ (ग़ज़ल)
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बहुत हो गया खेल अब सामने आ
है महबूब रब तो ए रब सामने आ
हैं वो रूबरू और दिल तू कहां है
परेशानियों के सबब सामने आ
उन्हें छिप के देखा ये देखा उन्होंने
इशारा किया बेअदब सामने आ
सफ़र ख़त्म मंज़िल खड़ी सामने है
कहां मर गई है तलब सामने आ
अंधेरा मिटेगा जलेगा जो 'दीपक'
हूं तैयार दुश्वार शब सामने आ ।।
