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Rani Kumari

Abstract

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Rani Kumari

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यही हिन्दुस्तान की पहचान

यही हिन्दुस्तान की पहचान

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गर्मी के बाद बरसात के बूंदों की रवानी

फिर शीतल शरद् की चलती मनमानी।

वृद्ध शरद को विदाई देती मकर संक्रांति

तब वसंत के नव-कोंपल गाते प्रभाती।


फसलों के इतराने का है यह मौसम

झूम के नाचो, गाओ और भूलो गम।

आहुति दें अग्निदेव को हम सब मिल

मूंगफली, रेवड़ियाँ और काले तिल।


इस दिन ही माँ गंगा धरा पर उतरीं

होकर सिंचित रूप वसुधा की निखरी।

माँ के पुण्य धारा में लगाने को डूब

गंगा सागर में भीड़ जमती खूब।


खाओ-खिलाओ तिल-गुड़ और लाई

मीठी-मीठी हो सबकी ही बोली भाई।

दही-चूड़ा और गुड़ की खिचड़ी खास

रिश्तों में घोलकर मिश्री लाये मिठास।


कहीं पोंगल, तो कहीं बीहू की बहार

कहीं लोहड़ी की धूम चटखदार।

कई रंगों में है रंगा एक ही त्योहार 

यही हिन्दुस्तान की पहचान है यार।


हम हर मौसम का स्वागत करते हर्षोल्लास

मनाकर त्योहार ऋतुसंधि को बनाते खास।

एक-दूजे को देते खुशियों की सौगात-बधाई

परिवर्तन की बेला में नव-उमंगें लेतीं अंगराई।


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