यह तो जनता है मेरे भाई
यह तो जनता है मेरे भाई
हवा भी रुख बदल लेती है,
यह तो जनता है मेरे भाई,
भटकने से वफा रोकती है,
विकासनम् वफा कर भाई।
कब पूछते हो जनता का जख्म कैसा है,
मौके बाद कहते मुआवजा दर्द जैसा है।
भले ही तुम इसे बेमतलब बेहिसाब समझलो,
कल रग रग में पग पग में पथ होगा समझलो।
आप समझते रहो मैं लिखता रहूंगा,
जनजागरुकता तक आगाज़ करूंगा।
यह तमन्ना खाक नहीं आबाद होगी,
शब्दों में गूंजती मेरी आवाज होगी।
कौन कहता कि अब नहीं मूर्ख बनेगी जनता,
जैसे आज ठग रही है हुक्म नबाबों की सत्ता।
अब लोग नहीं आते छप्पर उठाने किसी गरीब का,
गरीबी तो स्वयं उठा लेती है भार अपने जमीर का।