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Praveen Gola

Abstract

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Praveen Gola

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ये ज़िस्म

ये ज़िस्म

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ये ज़िस्म अब तेरा

गवाह बन गया है 

तू मिले या ना मिले

ये दवा बन गया है।


इसकी आत्मा जब भी

तड़पती तेरे लिए 

ये हर तड़प का

नशा बन गया है।


तेरे छूने से हुआ मैला 

अब महकता है देखो 

तेरे जाम के छलकने से 

मयकदा बन गया है।


कभी इसमे जब 

होती ना हरकत 

तेरी कल्पनायों से

ये निखर सा गया है।


दुनिया की परवाह

अब इसको ना होती

ये हर अंग से तेरा

सखा बन गया है।


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