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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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ये ठहरना

ये ठहरना

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तुम्हारे सौंदर्य में डूबा

और तुम्हें ही निहारता रहा मैं

समय आता रहा

जाता रहा

मौसम बदलते रहे

राज व्यवस्थाएँ बदलती रहीं

अपने पराए होते रहे

पराये अपने होते रहे

खुशी आती रही 

जाती रहा

दुख का आना जाना भी

लगा रहा

ये है समय का ठहरना

समय में, जीवन में

मौसम में

उमड़ते हुये भावों में

और इन्हीं से निरपेक्ष।

यूँ ही समा जाती हैं सदियां

एक ठहरे हुये पल में

यूँ ही कुछ रह जाता हमेशा

बात इतनी सी कि

तुम्हारे सौंदर्य में डूबना

और तुम्हें निहारना।


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