ये रात जो गुजरी है
ये रात जो गुजरी है
अभी अभी ये रात जो गुजरी है
जाने कैसे गुजरी है
ये किसका रंग उतर आया है
फूलों में आंखों में बस्ती में किरणों में।
वायदे थे भाई चुप रहने के
चुप ही रहे चुप ही रहे
दुख की चादर ओढ़े ओढ़े
खुश ही दिखे,खुश ही रहे
पर कुछ यायावर सा चीखा
अभी अभी ये हवा जो गुजरी है
ये किसका रूप उतर आया है
पलकों में कलियों में जीवन मे सपनों में।
डर सा लगता था रातों से
डर ही गये डर ही गये
तेरी यारी रात से यारी
कर ही लिये करते रहे
पर कुछ अनजाना सा चमका
अभी अभी आहट सी गुजरी है
ये किसका होश उतर आया है
यौवन में जंगल में नदियों में झरनों में।
जो था वो सब बना रहेगा
इसकी कोई बुनियाद नहीं थी
आवारा उड़ते बादल की
अपनी कोई औकात नहीं थी
शोख हवाओं संग संग नाचा
अभी अभी आवाज सी गुजरी है
ये किसका जोश उतर आया है
धड़कन में आशा में चाहत में अपनों में।