ये रात और ये खामोशियाँ
ये रात और ये खामोशियाँ
यूँ ही गुजर जाएं जो ये रातें अगर,
तो होश सुबह का किसे रहे,
यूँ ही बात करें जो ये खामोशियाँ अगर,
तो मोह अल्फाजों का किसे रहे।।।
यूँ ही गुजर जाएं जो ये रातें अगर,
तो होश सुबह का किसे रहे,
यूँ ही बात करें जो ये खामोशियाँ अगर,
तो मोह अल्फाजों का किसे रहे।।।