यज्ञ और आहुतियाँ
यज्ञ और आहुतियाँ
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यज्ञ था ये वर्षो का,
आहुतियाँ लाखों ने चढ़ाई है,
व्याकुलता थी ये वीरो की,
कर्मठता जिनकी यह रंग लाई है,
मेल हुआ जब, सन्त-सनातन-शासन का,
तब जाके यह सुबह यूँ आयी है,
पीड़ा थी जो पीढ़ियों की,
उससे मुक्ति की 'अब' घड़ी आई हैं।।।
पर बाकी है अभी मथूरा-काशी भी,
ये भी एक अटल सच्चाई है.........
