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Alok MS

Abstract Others

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Alok MS

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वक़्त और मसरूफियत

वक़्त और मसरूफियत

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बेख्याली है ये दिल की, या,

शायद मसरूफियत थोड़ी ज्यादा है,

बेखुदी को भी खुद पर अब,

बेअदब होने का डर ज्यादा है,

प्रकृति की छांव में चलने को यूँ तो,

ये मन अब भी खूब अकुलाता है,

पर वक़्त की डोर से.. बंधा ये मन,

अब राहों में, समय से ही होड़ लगाता है।


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