धर्म और सत्य
धर्म और सत्य
संसार के लिए वजूद का सौदा कर दूं,
इतना मैं समझदार नहीं,
भीड़ के लिए असत्य को सराहूं,
इतना मैं लाचार नहीं,
घनिष्ठता न त्याग सकूँ जो धर्म के निमित्त,
ऐसे व्यर्थ मेरे संस्कार नहीं।।।
संसार के लिए वजूद का सौदा कर दूं,
इतना मैं समझदार नहीं,
भीड़ के लिए असत्य को सराहूं,
इतना मैं लाचार नहीं,
घनिष्ठता न त्याग सकूँ जो धर्म के निमित्त,
ऐसे व्यर्थ मेरे संस्कार नहीं।।।