ये किस्मत रूठ जाती है अक्सर, इसे मैं मनाऊँ कैसे
ये किस्मत रूठ जाती है अक्सर, इसे मैं मनाऊँ कैसे
“ये किस्मत रूठ जाती है अक्सर, इसे मैं मनाऊँ कैसे,
ला के छोड़े मझधार में अक्सर, साहिल तक आऊँ कैसे,
ये सजा नहीं इम्तहान है मेरा, ये मन को समझाऊँ कब तक,
चलते रहना है तुझे हर हाल में बस अब, ये ज़ेहन को बतलाऊँ मैं कब तक,
देख जो राही इस रास्ते से जाता है वो ही मंजिल को पता है, ये धोका आँखों को भुनाऊँ मैं कब तक,
सब्र का प्याला खुद को पिलाऊँ मैं कब तक, ज़िन्दगी का ये गम सर पर उठाऊँ मैं कब तक,
सांसों के लड़खड़ाने का अब वक़्त नज़र आता है, इस रूठी किस्मत को छोड़ के जाने का वक़्त नज़र आता है,
एक मौजज़े की अब सख्त जरूरत है मुझे, जो बदले किस्मत को उन दुआओं की पुरजोर ज़रूरत है मुझे,
ए रब एक तेरा ही आसरा है अब तो, एक पत्ता न हिले तेरी मर्ज़ी से इस ज़माने में फिर तो ,
तू अपनी निगाहें मुझ पर करम कर दे, मेरी तकदीर को सवार, अब मेरी किस्मत को बुलंद कर दे”