ये कैसी मजबूरी
ये कैसी मजबूरी
कब काम आयेंगे मेरे कपड़े
कब निकलूँगी सजधज घर से
टंगे हुए ये अलमारी में
दुखी दुखी से लगते हैं
जब अलमारी खोलूँ अपनी
उम्मीद से भर कर तकते हैं
अगर कभी कहीं जाऊँ भी तो
पुराने की किस्मत खुलती है
जो भी कुर्ती पहन के जाऊँ
आकर फौरन धुलती है
नए बेचारे कुछ ना समझें
कैसा ये बहिष्कार है
अरे तुम्हे समझाएँ कैसे
तुमसे अधिक हमे प्यार है
रोज़ रोज़ पहनेंगे तुमको
रोज़ ही तुम धुल जाओगे
प्यार से तुम्हे कराते ड्राईक्लीन
घर में तुम गल जाओगे
इतने दिन से दुखी हो लगते
पर तुम ये
ना सोच भी सकते
तुमसे ज़्यादा हम ही दुखी हैं
मिस भी हम तुम्हे अधिक हैं करते
ड्रेसिंग टेबल खोल के देखा
दिखा लिपस्टिक का भी चेहरा
भरी हुई थी वो आशा में
अब मैं उसे उठाऊँगी
प्यार से ढक्कन हटा के उसका
होठों से चिपकाऊँगी
मैंने काजल को था उठाया
आँख में नज़र का टीका लगाया
जैसे ही फिर मास्क उठाया
लिपस्टिक ने मुझको धमकाया
नहीं लगाओगी मुझको तो
एक्सपायर हो जाऊँगी
फिर जब लगाना भी चाहो
तो हाथ नहीं मैं आऊँगी
अब इसको कैसे समझाऊँ
मेरी क्या मजबूरी है
सुन्दर दिखना हुआ है भारी
इसीलिए ये दूरी है।।