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Aditya Kumar

Drama

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Aditya Kumar

Drama

ये जो भी है अब

ये जो भी है अब

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जो खोली थी आँखे, रोशन सा सवेरा हुआ था,

वो बारिश की बूंदो में लपेटा सा हुआ था !


अब तो रोशन ये अँधेरा सा हुआ है,

धुएँ में समेटा सा सवेरा हुआ है !


बहती थी खुशबू वो ठंडी हवाओ में,

मिलती थी तितली भी खुली फिज़ाओं में !


अब तो ये साँसे भी मुश्किल हुई है,

वो तितली, वो चिड़िया कहीं खो गई है !


वो नदिया भी मुझको, चमकती सी दिखती थी,

वो सूरज की गर्मी भी इतनी तो नहीं थी !


अब वो नदियाँ भी कहीं खो गई है,

गर्मी की भी इन्तहा सी हो गई है !


था कितना सुकूं, रातों के सूनेपन में,

था कितना गुरूर, चाँदनी की चमक में !


है कितना शोर भी, आखिरी पहर में,

चाँदनी की तो अब जरुरत किसे है !


मैं अक्सर ये, बंद आँखों से देखता हूँ,

ये जो भी था, अब वो यह नहीं है !


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