ये जो भी है अब
ये जो भी है अब
जो खोली थी आँखे, रोशन सा सवेरा हुआ था,
वो बारिश की बूंदो में लपेटा सा हुआ था !
अब तो रोशन ये अँधेरा सा हुआ है,
धुएँ में समेटा सा सवेरा हुआ है !
बहती थी खुशबू वो ठंडी हवाओ में,
मिलती थी तितली भी खुली फिज़ाओं में !
अब तो ये साँसे भी मुश्किल हुई है,
वो तितली, वो चिड़िया कहीं खो गई है !
वो नदिया भी मुझको, चमकती सी दिखती थी,
वो सूरज की गर्मी भी इतनी तो नहीं थी !
अब वो नदियाँ भी कहीं खो गई है,
गर्मी की भी इन्तहा सी हो गई है !
था कितना सुकूं, रातों के सूनेपन में,
था कितना गुरूर, चाँदनी की चमक में !
है कितना शोर भी, आखिरी पहर में,
चाँदनी की तो अब जरुरत किसे है !
मैं अक्सर ये, बंद आँखों से देखता हूँ,
ये जो भी था, अब वो यह नहीं है !
