कुछ बोल रही थी फिजायें और बोल रही थी काली घटाए। कुछ बोल रही थी फिजायें और बोल रही थी काली घटाए।
था कितना सुकूं, रातों के सूनेपन में, था कितना गुरूर, चाँदनी की चमक में ! था कितना सुकूं, रातों के सूनेपन में, था कितना गुरूर, चाँदनी की चमक में !