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कुछ तो था लेकिन समझ से परे

कुछ तो था लेकिन समझ से परे

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कुछ तो था

जो समझ से परे

बैठा था,


कहीं दूर

सोच रहा था,


खुद को मैं

कुछ ढूंढ रहा था

अपने अन्दर,


वहीं दूसरी तरफ

सहमी सी आँखों के परे

कुछ कहना था,


अपने आप से

पर सोच रहा था

इस जमाने में,


मानो जैसा कुछ

बोल रही थी फिजायें

और बोल रही थी

काली घटाएँ।


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