ये इम्तहान की घड़ी है
ये इम्तहान की घड़ी है
सरक रही है रोशनी
अंधेरा पीछे पड़ी है I
ये मन भी भाग रहा
जाने किस उधेङबुन मे पड़ी है I
चल सम्भल जा बढ़ अकेले
यहां किसी को किसी से क्या पड़ी है I
स्वार्थ के रिश्ते नाते सब
हिम्मत कर ये इम्तहान की घड़ी है
मिशाल दे देता हूं
कमल का फूल है तू I
एक दिन तिलक बनेगा
उस मिट्टी का धूल है तू I
सिसक रही नन्हे
मृत माँ के सीने पर ।
कंधे पर उठा वह चल रहा
धिक्कार रहा अपने जीने पर ।
अपने गम छुपा कर
क्या वो देखेगा ये दुनियाँ कहां खड़ी है I
अंतर ज्वाला समेट कर
सह इस दौर जालिम को
कर नव निर्माण इस जग में
बदल समाज के बदत्तर तालीम को
चल सम्भल जा बढ़ अकेले
यहां किसी को किसी से क्या पड़ी है I
स्वार्थ के रिश्ते नाते सब
हिम्मत कर ये इम्तहान की घड़ी है।
