ये दिल्ली अब मीरओ ग़ालिब की नही
ये दिल्ली अब मीरओ ग़ालिब की नही
रो रहे है बहुत से यहाँ क्या चाहते हो
तुम भी हो नीरो तो बांसुरी बजाते हो
कहते तो हो तुम की किसी को कोई खतरा नहीं
फ़िर हमारे घर मे आकर हमारा पता पूछते हो
हम पर जोर आज़माते हो तो आज़माओ
देखते है तुम भी किस हद तक गिरते हो
जो घायल हुए वो लोग अपने ही थे
तुम तो लहू में भी मज़हब ढूँढ़ते हो
कोन रुकेगा औऱ कौन जाएगा ये वक़्त बताएगा
देखते हैं तुम अपने तख़्त पे कितना उछलते हो
ये वीरान गालियाँ ये बंद दुकानें न कोई आवाज़
तुम किसी कोने में बैठ के मंद मंद मुस्काते हो
सच तो सामने आ ही जाते है लोगों के
तुम तो सियाही में में झूठ घोलते हो
कुछ निशान हाथो से कभी नहीं जाते
देखे तुम कितना गंगा में नहाते हो
आ ऐ दिल के कही और बस चले इस दिल्ली से
जो तुम प्यार जताते हो हमें फ़रेबी नज़र आते हो।