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साहित्यकार सिब्बू

Tragedy

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साहित्यकार सिब्बू

Tragedy

ये दौर भी याद रहेगा

ये दौर भी याद रहेगा

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ये दौर भी याद रहेगा मेरे वतन को

जब देश भूखा था और सरकार नें ठेकें 

खुलवा दियें थें शराब के

इसिलिए कहता है 'सिब्बू ' विज्ञापन

देकर न समझाए औरो को 

सरकार भी झांके कभीं अपनें गिरेबान में


आलीशान पगडंडियों पर मज़दूर तड़प रहें थें

यें वहीं सड़़के थी जिनपर

'सबका साथ-सबका विकास' के नारें दियें गए थेें

जनाब ! विकास भी हुआ और साथ हीं हुआ

पर सिर्फ सरकार और उसकेें चम्मचों का


गरीब तो भूखे ही जीते थे सो भूख से ही मरे

शराबी खुले-आम घूम रहे थे

पर भिखारी के पास पैसे नहीं थे

वरना शराब के बहाने पड़ोस

के गाँँव से दो रोटी ले आता


आधी खुद खाता डेढ़ भूखे परिवार खिलाता

ये दौर भी याद रहेगा मेरे वतन को

जब भूखे को इज़ाजत चाहिए थी

और शराबी बेखौफ-बेबाक घूम रहे थे।


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