ये बेमौसम की बरसात
ये बेमौसम की बरसात
अमीर के महलों का कहाँ होता कोई नुकसान,
ये बेमौसम की बरसात तो लेती है गरीबों की जान,
बादलों को क्या दोष दें इसमें, उसका काम बरसना,
उसे फ़र्क कहाँ है पड़ता, किसका भीग रहा आसमान।।
धरा के प्यासे अधरों की जहाँ बुझ रही है प्यास,
वहीं गरीबी आशियाना बचाने को कर रही है प्रयास,
नवजीवन मिल जाता प्रकृति को, खिल उठती वसुंधरा,
और दूसरी ओर तम में तबदील हो रहा गरीब का उजास।।
गर्मी से मिली निजात, फैली चहुँ ओर हरियाली,
एक गरीब मजदूर की देखो कैसे बह रही खुशहाली,
काली घटाओ ने बरसकर भीगो दिया धरती का आँचल,
पर गरीबों के दामन में तो आए केवल दुःख का ही बदली।।
अमीरों के घर पकोड़े की प्लेट सजी देख बरसात,
गरीब की तो बह गई झोपड़ी कैसे बीतेगी उसकी रात,
कली मुस्काई, झूम रहे पेड़ पौधे पाकर बारिश की फुहार,
दूजी ओर यही फुहार गरीब के दिल को कर जाती आघात।।
बेमौसम बरसात जहाँ नवजीवन का होता आगाज़,
वहीं किसानों की मेहनत को भी कर देता पल में बर्बाद,
किसी के लिए ज़िंदगी तो किसी के लिए किस्मत की मार,
न जाने कितने रंग साथ लेकर आती है ये बेमौसम बरसात।।