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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

ये औरतें

ये औरतें

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ये औरतें बड़ी ही धोखेबाज होती हैं

खुद भूखी रहती है,हमें खिला देती हैं

ये औरते बडी ही चालबाज होती है

हम तो बस अपने ही दुःख से दुःखी है,


ये औरतें सबके लिये ही दुखी होती है

सच में ये औरतें बड़ी दगाबाज होती है

जब पलकें साथ छोड़ देती हैं,

तब हमारे आंसू गिर जाते हैं,


गिरे आंसू को भी ये थाम लेती है

ये औरतें सही में बेआवाज़ होती है

जब हर तरफ़ से अंधेरा होता है

उजाला भी अंधेरे से रोशन होता है


तब ये औरतें कभी मां, कभी पत्नी बन

ख़ुद जलकर रोशनी देनेवाली ज्योति होती है

वास्तव में ये औरतें बड़ी ही जांबाज़ होती है

पर बदकिस्मती से ये हमेशा नज़रंदाज़ होती है।


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