यात्रा जीवन की
यात्रा जीवन की
यूँ ही गुजरती जा रही थी
यात्रा जीवन की
और मैं चली थी उसे
दूंढ्ती इस कदर
नदियो की मंझदार में
सुरीली गीतों की झंकार में
नीले आसमान के आँचल में
या अपने ही पैरों के पायल में
मौसम के बसंत बहार में
या सावन के मीठी फुहार में
सबकी अनकही सी बातों में
या शीतल सी चन्दिनी रातों में
अपनी आँखो की मदहोशी में
या तन्हा सी अपनी खामोशी में
यूँ ही चलती जा रही थी
यात्रा जीवन की
फिर आज मैंने पा लिया
कारवां जिन्दगी का
जब उनकी आँखो ने
कुछ कहा था
और हथेली पर
कुछ लिखा था
मैंने पा लिया उस कारवां में
उनकी खामोश लब्जो मे
और उनके लिखे ढाई अक्षर ने
उस दिन मैंने पूरी कर ली थी
अपनी जीवन यात्रा।