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यादों की पुरवाई

यादों की पुरवाई

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रेल सी गुज़री है यादों की पुरवाई 

अहसास थरथराए मेरे जर्जरित पुल से

आँखें भर आई आज। 


जहन में खिलाया कँवल

तुम्हारी यादों का 

पुरानी पगडंडी पर चल पड़ी,


कशिश उसकी निगाहों

को नैनों में उभारकर 

उसकी छूअन के फूलों से

दामन भर लिया। 


महक उसके लिबास की

छाँटकर अपनी चुनरी से

भर ली कोख में।


प्यार भरी बातें उसकी

चुन चुन कर दिल के भीतर से

मन के कोने को सजा लिया। 


लो घूमने लगा है मेरे आसपास

वो ज़माना फिर से एक बार

मोहब्बत वाले लम्हों का।


रोम रोम खिल गया जी उठे अरमाँ 

शीत लहर सी यादें उसकी

तप्त ह्रदय में प्यास बढ़ा गई।


जुनून हद से गुज़र गया 

एक बार फिर तुम्हें पाने का।


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