यादों की दराज़
यादों की दराज़


दिल चटकता है मगर आवाज़ नहीं होती
आँख नम है, अब तबीयत नासाज़ नहीं होती।
दरवाज़े, खिड़कियां, चौखट सब हैं मेरे घर में
बस एक तुम्हारी यादों की दराज़ नहीं होती।
कुछ तो बात है तुम्हारे किरदार में, जाने क्यों
ख़फ़ा हो कर भी तुमसे कभी नाराज़ नहीं होती।
साथ बहती रहती हूँ तुम्हारे फ़िज़ा बनकर
पंख तुम मेरे, मैं तुम्हारी परवाज़ नहीं होती।
तुम फ़ानूस तो बनते, मैं शमा बन जल जाती
हवाओं से यारी अर्स-ए-दराज़ नहीं होती।
स्याही, कलम, दवात, सब मुकम्मल लेकिन
'अहमक़' हैं मेरी ग़ज़लें, सरफ़राज़ नहीं होती।